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लाल साहब तीसरा पन्ना ''
ये गोबर किसने बनाया है।''
श्रीनाथ अपेक्षाकृत
साहसी है और उसने कह ही डाला। अम्मा छाती फुला कर बोलीं सम्पदा ने। दोनों की समवेत
हँसी
कक्ष में गूंज उठी।
अध्ययन अध्यापन
और लीला।
लाल साहब को जो
इन्द्रधनुषीय अनुभूति इस समय हो रही है,
कभी न हुई थी।
वे चकित हैं कि
प्यार जैसी महान उपलब्धि के बारे में उन्होंने अब तक कैसे नहीं सोचा।
इस प्रेम रसायन
ने उनके र्दुव्यवहार को सद्व्यवहार में बदल डाला।
नीरजा तो उनकी
विशेष कृपा पात्र बन गई।
लालसाहब कभी कभी
नीरजा के कमरे में आकर उसका एलबम देखने लगते हैं।
इस एलबम में
उपमन्यु के बहुत से फोटो हैं।
लाल साहब उन फोटो
पर न्यौछावर हो जाते-
भाभी सर आपके मौसेरे भाई हैं न! शाम को खाना तैयार करते हुए
तीनों भाभियों में खुसुर पुसुर हुई-
जीजी, लाल साहब तो गये काम
से।
प्रेम के दरिया में डूब
रहे हैं।
स्वेटर ऐसे सहला रहे थे
जैसे उपमन्यु की पीठ हो।
नीरजा दीदे फाडे
बोली। सफेद स्वेटर में उपमन्यु
बहुत अच्छा लग रहा था।
नीरजा स्नेह से
बोली- आज
तो लगता है भाई तुम्हारी नजर उतार दूं। नीरजा चाय बनाने चली गई।
इधर लाल साहब
उपमन्यु को निहार रहे हैं जो स्वेटर पहन कर बच्चों सा किलक रहा है
- नीरजा ने
तो आज तबियत खुश कर दी।
अच्छा चलो देखो
कल क्या पढ रहे थे हम?''
उपमन्यु पढाने लगा पर सम्पदा का ध्यान पुस्तक में
नहीं है उसे तो अब तक ज्ञात नहीं था कि सृजन की कोई सराहना करे तो कितना
सुख मिलता है।
वह भाईयों के
सराहना करने को चोंचले और भाभियों के खुश होने को नखरे समझती थी।
वह भी सीखेगी
स्वेटर बनाना।
सर को जो भी
पसन्द है वह सब करेगी। यह देख कर भागवंती च्च..च्च.. उच्चारते हुए कुमकुम के कान के पास जाकर बोली, '' प्रेम में पड क़र लाल साहब का बुरा हाल है। पढाई करें, खाना बनाना सीखें या स्वेटर बुनना सीखें या सर की राह ताकें।'' भागवंती और कुमकुम के मध्य खूब फुसफुसाहट होती पर नीरजा से ये प्रेमप्रकरण न उगलते बनता न निगलते। उसे रह रह कर उपमन्यु पर क्रोध आता। उधर स्वेटर सीखती हुई पुत्री के आस पास डोलती अम्मां बावरी सी हुई जाती हैं कि पुत्री का स्वास्थ्य तो ठीक है। बाबूजी चमत्कृत हैं कि लडक़ी राह पर आ रही है। लडक़ी लाख प्यारी है पर उसके हाथ पीले करके गंगा तो नहाना ही पडेग़ा। राजा महाराजा तक तो अपनी पुत्रियों को घर नहीं रख पाये उनके पास तो नाम के ठकुरईसी है। बात चल रही है। ठीक ठाक जम जाए तो इसी गर्मी में ब्याह कर देंगे। वस्तुत: इकलौती लक्ष्मी सी
पुत्री को बहुत दुलार देते हुए भी बाबूजी ने नहीं सोचा था वह इस तरह
हठीली,
तुनक मिजाज, ख़ुर्राट हो जाएगी।
छूट का अनावश्यक
लाभ लेगी,
जब भी कभी उसे उसके व्यवहार के लिये समझाना चाहा वह सुबकने लगती,
चीखने लगती या भूखहडताल कर देती।
फिर निरुपाय
बाबूजी उसे मनाने में लग जाते।
उसी पुत्री में
हरिकृपा से अपेक्षित सुधार हो रहा है और बाबूजी हतप्रभ,
चमत्कृत! यह देख कर कि सम्पदा जीन्स शर्ट के स्थान पर
सलवार कुर्ता पहनने लगी है।
किसी बलात्कार की
घटना की चर्चा चलने पर कभी उपमन्यु ने कहा था
- सम्पदा ऐसी
घटनाओं के लिये पुरुष तो जिम्मेदार है ही पर लडक़ियां भी पूर्णत: निर्दोष
नहीं होतीं।
लडक़ियों का
पहनावा,
बोलचाल, रहन सहन,
अभिरुचियां सभी अमर्यादित होता जा रहा है।
ये आधुनिकता के
नाम पर शालीनता भूल रही हैं।
हम आंकडे देखेंगे
तो पाएंगे छेडछाड क़ी घटनाएं ऐसी ही लडक़ियों के साथ अधिक होती हैं।
हाँ कुछ लडक़ियां
परिस्थितियों का भी शिकार हो जाती हैं और निरपराध होते हुए भी कलंकित हो
जाती हैं।'' कैसा अपूर्व और अनिंद्य था
सम्पदा का वह समर्पित रूप।
बालिका सा निश्छल,
निर्दोष, ताजा।
उपमन्यु को लगा
इस लडक़ी का हृदय दर्पण सा निर्मल है बस अज्ञानतावश परिस्थितियों का
अनावश्यक लाभ लेती गई है।
उसकी श्वेत
सुकोमल हथेलियों पर तनिक दबाव डाल बोला-
सम्पदा संभालो स्वयं को वरना मैं कच्ची मिट्टी के
लौंदे सा ही ढह जाउंगा।
तुम मुझे उसी दिन
से अच्छी लगने लगी थी जब तुम नीरजा को देखने आई थीं।
मुझे जैसे एक नया
उत्साह,
नयी ऊर्जा, नयी ऊष्मा मिली थी।
फिर जब तुम्हारे
ठाट बाट देखे तो लगा कि मैं आकाश कुसुम की चाह कर बैठा
हूँ।
तुम बहुत रहीस पिता की
इकलौती पुत्री हो।
उन्होंने
तुम्हारे लिये बहुत कुछ सोच रखा है वे तुम्हारा विवाह ऐसे व्यक्ति से
करेंगे जो तुम्हें राजसी ठाट बाट दे सके। |
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