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लाल साहब                                  दूसरा पन्ना

पता नहीं उपमन्यु के भाग में मेवा खाना था या नहीं पर अगले महीने ही उसका स्थानान्तरण नीरजा की ससुराल के शहर में हो गयालाल साहब ने जब उपमन्यु को कॉलेज परिसर में देखा और सुना कि वह उसकी क्लास को हिन्दी साहित्य पढाएगा तो वह मन ही मन फुंफकारी - सफेद कपडों में स्वयं को शशि कपूर समझ रहा है वैसे लालसाहब गुरु का निरादर नहीं करते पर ये गुरु बाद में नीरजा भाभी का भाई पहले हैऔर भाभियों के मायके वालों से आदर से बात करना लाल साहब की नियमावली में नहींलाल साहब ने बडी सतर्कता से प्राध्यापक की कुर्सी में खुजली वाली केंवाच फैला दीबैठते ही उपमन्यु को खुजलाहट का दौरा पड ग़याउसे ताण्डव करते देख छात्राएं पेट पकड क़र हँसने लगीं लाल साहब अपने स्थान पर बैठे बैठे विकृत अट्टहास कर रहे थे

खुजलाहट से किसी सीमा तक नियंत्रण पाकर उपमन्यु ने एक विहंगम दृष्टि पूरी क्लास पर डाली उसकी भूरी पुतलियां लालसाहब के मुख पर आबध्द हो गयीं-

'' अरे आप आप इसी कॉलेज में हैं! ''
''
जज....।जी सम्पदा सिटपिटा गई।''
''
मैं इस सत्कर्म करने वाले के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। कभी कभी ऐसा स्वागत भी होना चाहिये। वैसे मैं चेहरा पढने में दक्ष हूँ। चेहरा पढ क़र बता सकता हूँ कि यह काम किसका है पर सबके बीच उसका नाम ले मैं उसे लज्जित नहीं करूंगा।''

कहते हुए उपमन्यु की दृष्टि लाल साहब के चौर्गिद फिसलती रहीजो लाल छडी उसके दिल के आर पार हो गई थी उसके मुख से दृष्टि हटाना आसान न थालाल साहब उस धीर गम्भीर दृष्टि की ताक झांक सह नहीं पा रहे थेये तो ज्योतिषी मालूम पडता हैतभी तो जान गया कि केंवाच मैं ने डाली हैलाल साहब की ग्रीवा, कमर तक झुक गईवस्तुत: लालसाहब की लालसाहबी घर तक ही सीमित है, बाहर वे शिष्ट शालीन ही रहते हैं

उपमन्यु पूरी कक्षा से सम्बोधित हुआ आज आप लोग अपना अपना परिचय देंकुछ अपनी कहें कुछ मेरी सुनेंआप लोगों को मास्टर्स डिग्री मिलने वाली हैमैं भी मास्टर आप भी मास्टरमुझे अपना मित्र समझेंकोई कठिनाई हो तो नि:शंक कहें

उपमन्यु ने अपने सरल प्रशान्त स्वभाव से पहले ही दिन मैदान मार लियासभी छात्राएं अपना परिचय देने लगींलालसाहब का उत्साह एकाएक चुक गयावे पिचके गुब्बारे से दिखने लगेये प्राय: प्रथम अवसर था जब लाल साहब स्वयं को अपराधी पा रहे थेउन्हें गुरु का अपमान नहीं करना चाहिये थाक्लास के बाद लाल साहब अपराधी से उपमन्यु के सामने आ खडे हुए

'' सॉरी सर''
''
किस बात के लिये? ''
''
मैं ने आपकी कुर्सी पर केंवाच.....। ''
''
केंवाच आपने डाली थी? पर आप जैसी शिष्ट लडक़ी''
''
जी।''
''
आप कहती हैं तो मान लेता हूँ।'' लाल साहब को इतने समीप देख कर उपमन्यु की छाती रेलगाडी सी धडधडाने लगी।
''
तोतो आप नहीं जानते केंवाच किसने डाली है? '' सम्पदा के कण्ठ में शब्द अटक कर रह गये।
''
नहीं मैं कैसे जानूंगा? खैर हटाइये आपने अपराध स्वीकार किया ये अच्छी बात है। मैं आशा करता हूँ आगे से आप ऐसी कुचेष्टा नहीं करेंगी।'' कह कर उपमन्यु मुस्कुरा दिया और स्टाफ रूम की ओर चला गया।

घर लौटते हुए लाल साहब आत्मग्लानि में डूबे हुए थेउन्होंने व्यर्थ ही अपनी पोल खोलीरात भर उपमन्यु का क्षमादान झिंझोडता रहाफिर भी उन्हें अपराध स्वीकार करके आत्मसंतोष मिल रहा थाउसकी दूधिया मुस्कान याद आती रही थीउसकी मुस्कान जैसे झील के स्चच्छ पानी में चाँदनी छिटकी हो दूसरे दिन शाम को उपमन्यु घर आ पहुँचा। गेट से उसे प्रविष्ट होते देख अपने कक्ष के वातायन में बैठे वॉकमैन सुन रहे लाल साहब ऐसे झटके से उठ खडे हुए जैसे निकट ही कहीं बम विस्फोट हुआ होअब उपमन्यु उसकी शिकायत करेगा और भाभियों के सामने उसकी हेठी होगीवह अव्यवस्थित सी कक्ष में चक्कर काटने लगीश्रीनाथ ने पर्दे की फांक से झांका -

'' सम्पदा, तुम्हारे सर आए हैं तुम्हें बुला रहे हैं।''
''
मुझे! पर क्यों? '' सम्पदा संट।
''
ऐसे ही बुला रहे हैं।''

धम्म धम्म पैर पटक कर चलने वाली सम्पदा, भीगी बिल्ली सी कला कक्ष में पहुँचीनमस्ते सर
उस भव्य सुसज्जित कला कक्ष में जैसे नुपुर बज उठे
नीरजा और अम्मा से बात कर रहे उपमन्यु ने उसे एक ओर बैठने का संकेत कर कहा- माता जी कह रही हैं आपको विषय सम्बंधी कुछ कठिनाइयां हैं मैं नीरजा से मिलने कभी कभी आता रहूँगा आप नि:संकोच हो मुझसे अपनी कठिनाईयां पूछ सकती हैं
''जी
''
'' प्रीवियस में कितना प्रतिशत आया है?''
'' छप्पन
''
'' थोडा मेहनत कर लेंगी तो प्रथम श्रेणी आ सकती है
''
'' जी
''

सम्पदा प्रयास करके भी जी से आगे नहीं बढ पा रही थीविषय सम्बंधी कुछ परामर्श सुन वह जल्दी ही अपने कक्ष में भाग आईवह कृतज्ञ थी कि उपमन्यु ने केंवाच प्रकरण नहीं उठाया

- और फिर कवियों की कविताओं का सरस वर्णन करते हुए उपमन्यु पता नहीं कब लाल साहब के हृदय के प्रकोष्ठों में उतरता चला गयाविद्यार्थियों के इस प्रिय गुरु की भूरी आँखे और प्रशान्त चितवन लाल साहब की आँखों में समा गईदेह में छाती गई एक सुखद स्वप्निल अनुभूति बन करउन्हें अचरज होता कि वे अनजाने उपमन्यु के स्वर, चाल ढाल, पोस्चर, वस्त्र विन्यास, केश विन्यास को परखते रहे हैंलाल साहब को आश्चर्य होता कि जिसे भाभी का भाई है कोई लाट साहब नहीं सोच कर लापरवाही से कंधे उचका दिये थे वह अनजाने अनचाहे उसकी स्मृतियों में आठों प्रहर विद्यमान रहता हैअपने इस परिवर्तन पर लाल साहब आश्चर्यचकित थे फिर भी उन्हें लगने लगा कि पुरुषों में एक ऐसा आकर्षण होता है जिसमें बंध कर बडे नन्दी भाव से सारी उमर गुजारी जा सकती हैवे उपमन्यु सर के लेक्चर सुनते हुए पता नहीं किन अज्ञात अदृश्य, मनोरम घाटियों में निर्बाध निर्द्वन्द्व नि:शंक भाव से उतरते चले गयेये निष्ठुर निर्मोही हठी लाल साहब अपने सद्य: प्रस्फुटित प्रेमअंकुरों को लेकर झेंपे, लजाये उडे उडे रहने लगे और भाभियां एक दूसरे को कनखी मार उनके इस राधा रूप का बखान करतीं

जब सुबह के नाश्ते के वक्त लाल साहब ने उद्धोषणा की मुझे एम ए फाईनल टफ लग रहा है, मैं उपमन्यु सर से टयूशन लूंगी तो नीरजा काँप कर रह गईअब ये उसके भाई की भावनाओं से खिलवाड क़रेगी और वो गरीब मारा जाएगाअभी कुछ दिन पहले ही तो बाबूजी अम्मां से कह रहे थे- अपनी इस बच्ची को बडे ठाठ बाट से विदा करुंगाहिंडोले में झूलेगी हुकुम बजाने को दसियों नौकर बडे समधी के माध्यम से बात चल रही है यदि जम जाएगा तो इसी गर्मी में इसका विवाह कर देंगेलडक़ा आई ए एस की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुका हैआजकल ट्रेनिंग में है

सुनकर अम्मा उत्साह और संतोष की उस नाव में सवार हो गई थीं जिसमें बाबूजी सवार थे, इधर लाल साहब कुछ और रच रहे हैं
लाल साहब का प्रस्ताव सुन कर बाबूजी कहने लगे- ' टयूशन लेना ही है तो किसी और से ले लो
उपमन्यु नीरजा का मौसेरा भाई हैटयूशन फीस न लेगा तो हमें संकोच होगा
'' कैसे न लेंगे
लिफाफा जबरन जेब में डाला जा सकता है बाबूजीवे बहुत अच्छा पढाते हैं मेरा डिविजन बन जाएगा''
'' ठीक है बात करेंगे
''

नीरजा ने अनिच्छा दर्शायी पर  तुम व्यर्थ परेशान होती होकह कर उपमन्यु नित्य सांध्यकाल पहुँचने लगापहले शाम को लाल साहब घर में कम ही टिकते थेकभी क्लब, कभी पिकनिक, कभी शॉपिंग, कभी थियेटर या सहेलियों के घरपर अब वे घर पर रह कर शाम की प्रतीक्षा में घुलने लगेविरह में दग्ध होने लगे

अम्मां संझा बेरी पुत्री को घर में देखती हैं तो तुष्ट होती हैं कि लडक़ी की लडक़ई जा रही है समझदारी आ रही है अम्मा जिस तिस देवी देवता के आगे माथा टेकती रहतीं थी कि पुत्री को समय रहते चेत आ जाएयद्यपि अम्मा ने मुक्तहस्त से सम्पदा पर दुलार लुटाया है पर उसके बडे होने के साथ ही वे दुश्चिंता में घिरती गईं कि इसके लालमिर्च से स्वभाव को देखते हुए ससुराल में इसका निर्वहन कैसे होगाउन्होंने कई बार सम्पदा को समझाना चाहा पर बात अब उनके हाथ में नहीं रह गई थीसम्पदा उन्हें अपनी फटकार से चित्त कर देती और अम्मां खेत रहे सेनानी सी अचल अचेत बैठी रह जातींअब वही घुमक्कड पुत्री घर में रहती है अम्मां प्रसन्न कैसे न रहें?

अम्मां को उपमन्यु का शाम को आना अच्छा लगने लगा है और वे नित्य ही उसके लिये चाय नाश्ते का प्रबंध कर रखतीं उपमन्यु हँसतासम्पदा रोज एेसा तर माल उडाउंगा तो होटेल का खाना बेस्वाद लगेगाये सब खा कर माँ की याद आ जाती हैघर के खाने में जो स्वाद है वह होटलों में कहाँ।
'' मालूम होता है आपको खाने पीने का बहुत शौक है
''
''
हाँ हैइस दो जून के खाने से ही तो आदमी तमाम दिन जूझने की ऊर्जा पाता हैअच्छा खाना बनाना भी एक कला है सम्पदा''
खाना बनाना कला? क्या सचमुच? तभी श्रीनाथ कहता हैनीरजा, इतना अच्छा खाना न बनाया करो वरना किसी दिन सुरूर में आकर मैं तुम्हारी उंगलियां चबा जाऊंगा

नीरजा मंद मंद मुस्कुराती और लाल साहब के अधर तिर्यक हो जाते  खाना बना दिया तो मानो जंग जीत ली
और अब उपमन्यु वही भोजन प्रकरण लेकर बैठ गया है
'' अच्छा च
लूं।''
'' ओह
हाँ।'' सम्पदा पता नहीं कहाँ खोई थी
'' सर ये टयूशन फीस
''
'' फिर वही, सम्पदा तुम इस तरह मुझे संकोच में डालती हो
कुछ क्षण में घरेलू वातावरण में व्यतीत करता हूँ, क्या ये पर्याप्त
नहीं?''
'' अच्छा इसे आप न लें और हम संकोच में पडें
है न! ना, बाबा ना'' सम्पदा ने बडे अधिकार से लिफाफा उपमन्यु की कमीज
की जेब में डाल दिया
सम्पदा की लरजती स्वेद सिक्त उंगलियां उपमन्यु की धडधडाती छाती से जा टकराईंपेन लेते देते, पुस्तक
के पन्ने पलटते हुए तो कई बार उंगलियों की पोरों का टकराव होता है पर हृदय की धडक़न को महसूसती हुई सम्पादा बिलकुल ही
कुमकुमी हो आयी
सम्पदा रात भर वह स्पर्श महसूस करती रहीउपन्मन्यु की धडक़न सुनती रहीसुबह लाल साहब रसोई में पहूँचे - बडी भाभी आज सब्जी हम बनाएंगेतीनों भाभियां इस तरह एक दूसरे का मुँह ताकने लगीं जैसे उनके साथ कोई दुर्घटना घटने जा रही होलाल साहब को बघार के तीखे धुँएं से उबकाई आती है फिर आज ये कैसा हठ? भागवंती बोली- ' अरे नहीं लालओह सम्पदा जी ये गजब ना ढाओतुम्हारे भाई हमारे प्राण निकाल लेंगेरहने दो, रहने दो
'' भाईयों से मैं निबट लूंगी, भाभी तुम तो मुझे सब्जी बनाना सिखाओ
प्लीज'' लाल साहब नीरजा को कंधे से पकड ग़ोल गोल घूमने लगेसम्पदा के साथ जबरन घूमती नीरजा, नीरीह सी दिखने लगी थीलाल साहब के ऐसे स्नेह की आदत जो न थीऐसे क्या देख रही हो भाभी? सिखाओगी न!

लाल साहब के इस आग्रह पर तीनों भाभियां दुविधा में पड ग़ईंलाल साहब सब्जी बनाने में जुट गये और हाथ जला बैठेलाल सुर्ख हथेली में फफोले छलछला आए पर अचरज कि उन्होने कोई विशेष तबाही नहीं मचाईयह वही लाल साहब थे जिनके हाथ में गुलाब का पुष्प तोडते में कांटा चुभा था और वे ऐसे कराहे छटपटाये थे कि घर के सभी मेम्बरानों को दर्द होने लगा थासब्जी का स्वाद वर्णनातीत था पर बाबूजी ने पुत्री का प्रयास देख फरमान जारी कर दिया घर के सभी सदस्य यह सब्जी अवश्य खाएंगेबाबूजी प्रेम से खाने लगे पर श्रीनाथ ने ऐसा मुंह बनाया जैसे बहुत कडवा खाद्यान्न चबा लिया हो

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