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  मदरसों के पीछे

पहाडियों से घिरा, हजारों फुट की ऊँचाई पर स्थित कन्धहार नगर अफग़ानिस्तान का ऐतिहासिक नगर है। यहाँ से कुछ दूरी पर मदरसा और सैनिक कैम्प हैपुरानी तहजीब और संस्कृति का यह स्थान अब इस्लामी धार्मिक कट्टरता का केन्द्र बन गया है

नगर से दूर इस्लामी धार्मिक मदरसे में शाहनाज पढाती हैवह इसी मदरसे में रहती है वह रोज सुबह दूर पीने का पानी भरने जाती है और रास्ते के टीले पर बने घर के पास आशा भरी दृष्टि से देखती है उसका मंगेतर दोसाबीन यहीं रहता थापरन्तु बहुत दिनों से वह नहीं दिखाई दियाशाहनाज वहाँ खडी होकर सोचने लगी, वह अतीत के पृष्ठों को पलटकर पढने लगीवह शाहनाज को बुलबुल कहकर सम्बोधित करता थाउसे स्मरण हो आया,

''बुलबुल, हम सरहद पार जा रहे है जंग करने''
''
किसके साथ जंग करोगे'', शाहनाज दुखी होकर पूछती।
''
वहाँ जाकर पता चलेगा'', कहकर दोसाबीन शाहनाज को बाहों में भर लेता।
''
यह कैसी जंग है दोसाबीन? जहाँ दुश्मन का ही नहीं पता'', कहकर वह उसके नयनों को गौर से देखने लगती।
''
दुश्मन का पहले पता करना है, फिर वार'', दोसाबीन महसूस करता कि वह बहुत ज्ञान की बात कह रहा है। परन्तु ये बेसिर पैर की बातें शाहनाज को सान्त्वना नहीं दे पा रही थीं।
''
तुम पास रहकर मुझ जैसी भोली भाली मित्र को नहीं जान पा रहे हो तब दूर जाकर उस शख्स को दुश्मन कैसे कह सकते हो जिसे तुमने देखा नहीं।''
''
तुम मुझे जान से ज्यादा अजीज हो बुलबुल! तुम मेरी हो चुकी हो। बस शादी करना ही तो बाकी है। बस दो चार दिन की ही तो बात है।''

दूसरे दिन मदरसा बन्द थाशाहनाज अपने मंगेतर की बाहों में कब सोयी कब जागी उसे पता नहीं चला
वह दोनो अपने मन में विवाह कर चुके थे

वह वहाँ स्तब्ध खडी थीतभी एक गधागाडी आयी। उसका ध्यान भंग हुआशाहनाज वापस मदरसे लौट आयी

धार्मिक मदरसे में बच्चों ने आना शुरू कर दिया थाप्रायः सुबह से ही समीप ही बसे सैनिक कैम्प से गोलाबारी का शोर जब शाहनाज के कानों तक आता वह सहम जाती थीउसके मुख से निकल पडता, ''हाय अल्लाह! क्या होगा इस मुल्क का! '' वह बाद में सोचती कि किसी ने सुन तो नहीं लियाशाहनाज ने बुरके की जाली से आसपास देखा। वहाँ कोई नहीं थादीवारों के भी कान होते हैं, वह भली भांति जानती थीमदरसा सैनिक कैम्प के पास थाकहा जाता है कि मदरसे के सैनिक ठिकानों के पास होने का कारण था कि आने वाले समय में यही बच्चे सैनिक बनेंगे

शाहनाज को भली भांति स्मरण है कुछ दिनों पहले की ही बात है जब उसकी सहअध्यापिका अफसाना के पति को मृत्युदण्ड की सजा दी गयी थीमृत्युदण्ड को देखने के लिए भरी बाजार में लोग जमा थेशाहनाज अपनी सहेली अफसाना के साथ गधेगाडी में बैठकर आयी थीअफसाना के पति के दोनो हाथ पीठ के पीछे बँधे थे। आँखों में पट्टी बँधी थीअनेकों गधेगाडियों में महिलायें बैठी थींकितना दर्दनाक था वह दृश्य धर्मान्ध होकर वहाँ के शासक कैसे नरभक्षी बने जा रहे हैंअफसाना बुदबुदाई,

''जहाँ इनसान की कोई कीमत नहीं वह समाज, वह धर्म किस काम का''

साफा पहने लम्बी बढी दाढी में एक सैनिक ने अफसाना के पति के पीठ पर गोली मारीवह आगे की ओर लुढक़ गयाअफसाना चीखी और बेहोश हो गयी थी

शाहनाज को भली भांति स्मरण है कुछ दिनों पहले की ही बात है जब वह यहां बालिकाओं को पढा रही थी

अफसाना का बयान लेने सिपाही के साथ मुल्ला गुलरेज भी वहां आये थेजांच पडताल के समय अफसाना के साथ साथ शाहनाज के सर से बुरका हटवाया गया थाजब मुल्ला गुलरेज की नजर शाहनाज के खूबसूरत चेहरे पर पडी थी तब उनका मन बेइमान हो उठा थाशाहनाज के लाख बताये जाने पर कि उसकी शादी की बात आत्मघाती गोरिल्ला दस्ते के सिपाही दोसाबीन के साथ हो चुकी है जो सीमा पार युध्द में गया हुआ हैपर मुल्ला गुलरेज न माने और आये दिन जोर जबरदस्ती करतेपिता गोरिल्ला युध्द में मारे गये थे और माँ खुले शरणार्थी शिविर में शीत लहर में मारी गयी थींउस पर दुखों के पहाड एक एक करके उस पर ढह रहे थे

दोसाबीन की भी बहुत दिनों से कोई खबर नहीं आयीबारबार वह दोसाबीन द्वारा दिए उपहार स्वरूप रेडियो को द्वार बन्द करके सुना करती थीकहीं किसी ने यह जान लिया कि शाहनाज रेडियो पर दूसरे देशों के चैनल सुनती है तो आफत आ जाती दूसरे देशों के रेडियो और टी वी देखने की मनाही थीमुल्ला गुलरेज की पहले से दो पत्नियां थींपरन्तु कोई सन्तान नहीं थीजब शाहनाज ने पूछा था,

''जब पहले से ही दो पत्नियां हैं फिर क्यों तीसरी शादी करना चाहते है?''
''
औरतें गुलदस्तों की तरह होती हैं। फिर इस्लाम में तो चार शादी की इजाजत है।''

मुल्ला गुलरेज अपने जवाब से अपने आप में फूले नहीं समा रहे थे जैसे उन्होंने अपने बातूनी तीर से कोई शिकार मार दिया होयह जानते हुए भी कि वह अब पिता नहीं बन सकते फिर भी अपने को फन्नेखाँ समझते थे

शाहनाज भली भांति जानती थी कि आये दिन लोग धर्म के और इस्लाम के नाम की दुहाई देकर अपने बुरे इरादे पूरे करना चाहते हैंमुल्ला गुलरेज इसके अपवाद न थेअभी भी अफगानिस्तान और दूसरे देशों में औरतो को दूसरे दर्जे का शहरी समझा जाता है शाहनाज मरती क्या न करतीअसहाय अनाथ शाहनाज को लोग परेशान करने से नहीं चूकतेअपने पिता के हमउम्र गुलरेज के समाज में प्रभाव और जुल्म के कारण शाहनाज विवाह के लिए मजबूर हो गयी थी

शाहनाज के पाँवों मे शादी की बेडियाँ पड ग़यी थींवह स्कूल के बच्चों में अपना पूरा ध्यान लगाती थीकुछ महीने के लिए धर्म-प्रचार करने मुल्ला गुलरेज विदेश चले गयेजैसे-जैसे समय व्यतीत होता शाहनाज अपने शरीर में भारीपन महसूस करतीउसे पेट में आये दिन दर्द भी होताउसने अपनी सहेली अफसाना को बतायाअफसाना ने उसे एक दाई को दिखाया जिसने शाहनाज को माँ बनने की सूचना दीकभी तो शाहनाज खुश होती कि उसका साथ देने वाला आने वाला हैऔर कभी यह सोचकर सहम-काँप जाती कि यदि मुल्ला गुलरेज ने यह नहीं स्वीकारा कि होने वाला बच्चा उसका नहीं है तब क्या होगा? जो भी वह बच्चे को जन्म देगी, उसने निश्चय कर लिया था

पूरे इलाके में चर्चा हो रही है कि मुल्ला गुलरेज बुढापे में बाप बनने जा रहा हैकुछ लोग कहते कि यदि मुल्ला गुलरेज यहाँ होता तो वे उससे मिठाई खातेसमय तेजी से बीत रहा था शाहनाज को अब चलने-फिरने में तकलीफ होतीदाई कहती कि एक महीने में शाहनाज माँ बन जायेगी

मुल्ला गुलरेज वापस आ गये तो उन्हें लोगों ने बधाई देना शुरू कियामुल्ला गुलरेज अपने घर गये शाहनाज को अनेक औरतों ने घेर रखा था मुल्ला गुलरेज ने सभी के सामने ही बरस पडे,

''शाहनाज की बच्ची! तुमने किसके साथ गुल खिलाया है?''
''
कुछ सब्र से काम लें। पहले नाश्ता पानी करें।'' शाहनाज ने गहरी सांस लेते हुए कहा।

मुल्ला गुलरेज आग बबूला हो रहे थे औरतें मुल्ला गुलरेज को गुस्से में देखकर अपने-अपने घरों की तरफ जाने लगीं, केवल अफसाना रूक गयी थीशाहनाज मुल्ला गुलरेज के सामने पीठ करके बैठ गयी थीअफसाना वहीं खडी हो गयी थी मुल्ला गुलरेज ने हाथ में एक लाठी ली और शाहनाज की पीठ पर वार करने ही वाले थे कि अफसाना ने लाठी हाथ से पकड लीमुल्ला गुलरेज ऊँची आवाज में उसे भला बुरा कहने लगे उन्होंने अफसाना का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा,

'' तुम नहीं जानती अफसाना कि इसके पेट में पाप पल रहा है। दुनिया जानती है कि मैं नामर्द हूँ। इससे पूछो कि यह किसका पाप अपने पेट में पाल रही है?''
''
अब रहने भी दें, इस पर और जुल्म न करें। दुनिया इसे आपकी ही औलाद कहेगी।'' अफसाना ने मुल्ला गुलरेज को समझाने की कोशिश की।
''
कितनी बार कहूँ कि इसके पेट में जो बच्चा पल रहा है वह मेरा नहीं है।''
''
फिर किसका है मौलाना साहब?'' अफसाना ने प्रश्न किया।
''
इस कुलटा से पूछो, यही बतायेगी मेरे जाने के बाद किसके साथ गुलछर्रे उडाती रही।'' मुल्ला गुलरेज ने अपनी लम्बी दाढी पर हाथ फेरते हुए कहा। शाहनाज से न रहा गया। उसने स्तब्धता छोड क़र कहने लगी,
''
आपके जाने के बाद कोई भी मेरे पास नहीं आया। पर शादी के पहले ''
''
हाँ - हाँ शादी के पहले क्या हुआ सभी को बताओ?'' मुल्ला गुलरेज चीखे थे।
''
अफसाना इनसे कहो, खुदा के लिये ये कहर न ढायें। इन्हें सभी कुछ मैने बता दिया था। इसी लिए मैं शादी नहीं करना चाहती थी।'' शाहनाज ने बुरके को सर से हटाकर कहने लगी,
''
जो चेहरा चाँद से ज्यादा खुबसूरत था, उसमें इतनी जल्दी दाग नजर आने लगे। जिन हाथों में मुझे जन्नत कहकर उठाते थे उन्ही हाथों से मेरी लाश क्यों उठाना चाहते हैं?'' मुल्ला गुलरेज के विरोध को कोई कम न कर सका। वह कहते गुस्से में कहते हए घर से निकल गए,
''
मैं अदालत में आवाज उठाऊँगा।''
''
आदमियों की अदालत में कब तक बकरों की तरह हलाल होते रहेंगे? धर्म के नाम पर आदमी कब तक औरत को अपनी हवस का शिकार बनाता रहेगा?''

शाहनाज का विश्वास समाज से उठ गया था जहाँ औरत को अपने पति को चुनने की इजाजत नहीं थी। जहाँ कानून और समाज में औरत को बराबरी का दर्जा देना तो दूर उसे समान हक, तलाक देने और मताधिकार की इजाजत नहीं थी

''हाँ शाहनाज, तुम ठीक कहती हो। पर मौत के लिए तैयार रहो। हम औरतों की गवाही की अहमियत कहाँ है।''

कहकर अफसाना उदास हो गयी थीजब उसके पति को मृत्युदण्ड दिया गया था उसकी गवाही को अहमियत नहीं दी गयी थी

आज मदरसा बन्द थामदरसे के पीछे बहुत बडा मजमा लगा हुआ हैअफगानिस्तान के नगाडे क़ी आवाज लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही थीआज दो बातें घटेंगी एक दुखद घटना है बच्चों के लिए स्कूल के बच्चे अपने पिताओं के साथ आये थेआज उनकी अध्यापिका-टीचर को मौत की सजा मिलेगीदूसरी ओर विजय पर्व मनाया जा रहा है

यहां का गुरिल्ला दस्ता पडोसीदेशों में आतंकी हमले करके वापस आये हैएक ओर बुरका पहने एक औरत के पीठ के पीछे हाथ बँधे थेउसके साथ एक अन्य औरत खडी है पास कुछ सिपाही खडे थेतभी घोषणा होती है,

''आज मुजरिम शाहनाज को दुश्चरित्र होने के अपराध में गोली मारकर मृत्युदण्ड दिया जायेगा। उसके बाद यहाँ जश्न-खुशी मनायी जायेगी। थोडी ही देर में युवकों का विजयी गुरिल्ले दस्ते का स्वागत किया जायेगा। आदि...''

घोषणा पूरी होती कि सभी लोग उस ओर देखने लगे जिधर से आसमान में धूल उडती दिखायी दे रही थीधूल पास आने लगी और साथ ही दो जीपों के आने की आवाजबन्दूकों से गोलियों के छूटने की आवाज के साथ जीपें रूकी

जीप से सबसे पहले दोसादीन हाथ में मशीनगन लिए कूदाअफसाना ने हाथ बँधे खडी शाहनाज से कहा,

''शाहनाज मदद के लिए चीख! वह देखो तेरा मददगार दोसाबीन आ गया है।'' दोसाबीन काफी पास तक आ गया था।
''
दोसाबीन मैं शाहनाज, बेगुनाह हूँ। मुझे बचाओ, दोसाबीन! दोसाबीन मुझे बचाओ!''

अफसाना दौडक़र, बढक़र शाहनाज के सर से बुरका उठाती है
सिपाही अपनी बन्दूक को सम्भालते हुए शाहनाज की तरफ उसकी नोक करता है, कि तभी दोसाबीन अपनी मशीनगन से सिपाही को मौत के घाट उतार देता है
दूसरा सिपाही दोसाबीन की तरफ बन्दूक का निशाना साधता है कि उसका साथी दूसरे सिपाही को घायल कर देता हैधार्मिक नेता शान्ति की अपील करते हैं और अपने स्थान पर खडे रहने के लिए प्रार्थना करते हैं दोसाबीन अपनी कमर में से छुरी से शाहनाज के बँधे हाथ की रस्सी काटकर कर गले लग गया था और दोसाबीन के साथियों ने मशीनग लिये हुए उसके चारो ओर रक्षात्मक घेरा बना लिया था

सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक
 

  

इन्द्रनेट पर हलचल - सुब्रा नारायण
अपने अपने अरण्य - नंद भारद्वाज
चिडिया और चील - सुषम बेदी
ठठरी - हरीश चन्द्र अग्रवाल
प्रश्न का पेड - मनीषा कुलश्रेष्ठ
बुध्द की स्वतंत्रता - मालोक
भय और साहस - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
मदरसों के पीछे - रमेशचन्द्र शुक्ल
महिमा मण्डित - सुषमा मुनीन्द्र
विजेता - सुषमा मुनीन्द्र
विश्वस्तर का पॉकेटमार- सधांशु सिन्हा हेमन्त
शहद की एक बूंद - प्रदीप भट्टाचार्य
सम्प्रेषण  - मनीषा कुलश्रेष्ठ
सिर्फ इतनी सी जगह - जया जादवानी

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