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मदरसों के पीछे
पहाडियों से घिरा, हजारों फुट की ऊँचाई पर स्थित कन्धहार नगर अफग़ानिस्तान का ऐतिहासिक नगर है। यहाँ से कुछ दूरी पर मदरसा और सैनिक कैम्प है। पुरानी तहजीब और संस्कृति का यह स्थान अब इस्लामी धार्मिक कट्टरता का केन्द्र बन गया है। नगर से दूर इस्लामी धार्मिक मदरसे में शाहनाज पढाती है। वह इसी मदरसे में रहती है। वह रोज सुबह दूर पीने का पानी भरने जाती है और रास्ते के टीले पर बने घर के पास आशा भरी दृष्टि से देखती है। उसका मंगेतर दोसाबीन यहीं रहता था। परन्तु बहुत दिनों से वह नहीं दिखाई दिया। शाहनाज वहाँ खडी होकर सोचने लगी, वह अतीत के पृष्ठों को पलटकर पढने लगी। वह शाहनाज को बुलबुल कहकर सम्बोधित करता था। उसे स्मरण हो आया, ''बुलबुल,
हम सरहद पार जा रहे
है जंग करने'' दूसरे दिन मदरसा बन्द था।
शाहनाज अपने
मंगेतर की बाहों में कब सोयी कब जागी उसे पता नहीं चला। वह वहाँ स्तब्ध खडी थी। तभी एक गधागाडी आयी। उसका ध्यान भंग हुआ। शाहनाज वापस मदरसे लौट आयी। धार्मिक मदरसे में बच्चों ने आना शुरू कर दिया था। प्रायः सुबह से ही समीप ही बसे सैनिक कैम्प से गोलाबारी का शोर जब शाहनाज के कानों तक आता वह सहम जाती थी। उसके मुख से निकल पडता, ''हाय अल्लाह! क्या होगा इस मुल्क का! '' वह बाद में सोचती कि किसी ने सुन तो नहीं लिया। शाहनाज ने बुरके की जाली से आसपास देखा। वहाँ कोई नहीं था। दीवारों के भी कान होते हैं, वह भली भांति जानती थी। मदरसा सैनिक कैम्प के पास था। कहा जाता है कि मदरसे के सैनिक ठिकानों के पास होने का कारण था कि आने वाले समय में यही बच्चे सैनिक बनेंगे। शाहनाज को भली भांति स्मरण है कुछ दिनों पहले की ही बात है जब उसकी सहअध्यापिका अफसाना के पति को मृत्युदण्ड की सजा दी गयी थी। मृत्युदण्ड को देखने के लिए भरी बाजार में लोग जमा थे। शाहनाज अपनी सहेली अफसाना के साथ गधेगाडी में बैठकर आयी थी। अफसाना के पति के दोनो हाथ पीठ के पीछे बँधे थे। आँखों में पट्टी बँधी थी। अनेकों गधेगाडियों में महिलायें बैठी थीं। कितना दर्दनाक था वह दृश्य। धर्मान्ध होकर वहाँ के शासक कैसे नरभक्षी बने जा रहे हैं। अफसाना बुदबुदाई, ''जहाँ इनसान की कोई कीमत नहीं वह समाज, वह धर्म किस काम का'' साफा पहने लम्बी बढी दाढी में एक सैनिक ने अफसाना के पति के पीठ पर गोली मारी। वह आगे की ओर लुढक़ गया।अफसाना चीखी और बेहोश हो गयी थी। शाहनाज को भली भांति स्मरण है कुछ दिनों पहले की ही बात है जब वह यहां बालिकाओं को पढा रही थी। अफसाना का बयान लेने सिपाही के साथ मुल्ला गुलरेज भी वहां आये थे। जांच पडताल के समय अफसाना के साथ साथ शाहनाज के सर से बुरका हटवाया गया था। जब मुल्ला गुलरेज की नजर शाहनाज के खूबसूरत चेहरे पर पडी थी तब उनका मन बेइमान हो उठा था। शाहनाज के लाख बताये जाने पर कि उसकी शादी की बात आत्मघाती गोरिल्ला दस्ते के सिपाही दोसाबीन के साथ हो चुकी है जो सीमा पार युध्द में गया हुआ है। पर मुल्ला गुलरेज न माने और आये दिन जोर जबरदस्ती करते। पिता गोरिल्ला युध्द में मारे गये थे और माँ खुले शरणार्थी शिविर में शीत लहर में मारी गयी थीं। उस पर दुखों के पहाड एक एक करके उस पर ढह रहे थे। दोसाबीन की भी बहुत दिनों से कोई खबर नहीं आयी। बारबार वह दोसाबीन द्वारा दिए उपहार स्वरूप रेडियो को द्वार बन्द करके सुना करती थी। कहीं किसी ने यह जान लिया कि शाहनाज रेडियो पर दूसरे देशों के चैनल सुनती है तो आफत आ जाती। दूसरे देशों के रेडियो और टी वी देखने की मनाही थी। मुल्ला गुलरेज की पहले से दो पत्नियां थीं। परन्तु कोई सन्तान नहीं थी। जब शाहनाज ने पूछा था, ''जब
पहले से ही दो पत्नियां हैं फिर क्यों तीसरी शादी करना चाहते है?'' मुल्ला गुलरेज अपने जवाब से अपने आप में फूले नहीं समा रहे थे जैसे उन्होंने अपने बातूनी तीर से कोई शिकार मार दिया हो। यह जानते हुए भी कि वह अब पिता नहीं बन सकते फिर भी अपने को फन्नेखाँ समझते थे। शाहनाज भली भांति जानती थी कि आये दिन लोग धर्म के और इस्लाम के नाम की दुहाई देकर अपने बुरे इरादे पूरे करना चाहते हैं। मुल्ला गुलरेज इसके अपवाद न थे। अभी भी अफगानिस्तान और दूसरे देशों में औरतो को दूसरे दर्जे का शहरी समझा जाता है। शाहनाज मरती क्या न करती। असहाय अनाथ शाहनाज को लोग परेशान करने से नहीं चूकते। अपने पिता के हमउम्र गुलरेज के समाज में प्रभाव और जुल्म के कारण शाहनाज विवाह के लिए मजबूर हो गयी थी। शाहनाज के पाँवों मे शादी की बेडियाँ पड ग़यी थीं। वह स्कूल के बच्चों में अपना पूरा ध्यान लगाती थी। कुछ महीने के लिए धर्म-प्रचार करने मुल्ला गुलरेज विदेश चले गये। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता शाहनाज अपने शरीर में भारीपन महसूस करती। उसे पेट में आये दिन दर्द भी होता। उसने अपनी सहेली अफसाना को बताया। अफसाना ने उसे एक दाई को दिखाया जिसने शाहनाज को माँ बनने की सूचना दी। कभी तो शाहनाज खुश होती कि उसका साथ देने वाला आने वाला है। और कभी यह सोचकर सहम-काँप जाती कि यदि मुल्ला गुलरेज ने यह नहीं स्वीकारा कि होने वाला बच्चा उसका नहीं है तब क्या होगा? जो भी वह बच्चे को जन्म देगी, उसने निश्चय कर लिया था। पूरे इलाके में चर्चा हो रही है कि मुल्ला गुलरेज बुढापे में बाप बनने जा रहा है। कुछ लोग कहते कि यदि मुल्ला गुलरेज यहाँ होता तो वे उससे मिठाई खाते। समय तेजी से बीत रहा था। शाहनाज को अब चलने-फिरने में तकलीफ होती। दाई कहती कि एक महीने में शाहनाज माँ बन जायेगी। मुल्ला गुलरेज वापस आ गये तो उन्हें लोगों ने बधाई देना शुरू किया। मुल्ला गुलरेज अपने घर गये। शाहनाज को अनेक औरतों ने घेर रखा था। मुल्ला गुलरेज ने सभी के सामने ही बरस पडे, ''शाहनाज
की बच्ची! तुमने किसके साथ गुल खिलाया है?'' मुल्ला गुलरेज आग बबूला हो रहे थे। औरतें मुल्ला गुलरेज को गुस्से में देखकर अपने-अपने घरों की तरफ जाने लगीं, केवल अफसाना रूक गयी थी। शाहनाज मुल्ला गुलरेज के सामने पीठ करके बैठ गयी थी। अफसाना वहीं खडी हो गयी थी। मुल्ला गुलरेज ने हाथ में एक लाठी ली और शाहनाज की पीठ पर वार करने ही वाले थे कि अफसाना ने लाठी हाथ से पकड ली। मुल्ला गुलरेज ऊँची आवाज में उसे भला बुरा कहने लगे। उन्होंने अफसाना का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, ''
तुम नहीं जानती अफसाना कि
इसके पेट में पाप पल रहा है। दुनिया जानती है कि मैं नामर्द हूँ। इससे
पूछो कि यह किसका पाप अपने पेट में पाल रही है?'' शाहनाज का विश्वास समाज से उठ गया था जहाँ औरत को अपने पति को चुनने की इजाजत नहीं थी। जहाँ कानून और समाज में औरत को बराबरी का दर्जा देना तो दूर उसे समान हक, तलाक देने और मताधिकार की इजाजत नहीं थी। ''हाँ शाहनाज, तुम ठीक कहती हो। पर मौत के लिए तैयार रहो। हम औरतों की गवाही की अहमियत कहाँ है।'' कहकर अफसाना उदास हो गयी थी। जब उसके पति को मृत्युदण्ड दिया गया था उसकी गवाही को अहमियत नहीं दी गयी थी। आज मदरसा बन्द था। मदरसे के पीछे बहुत बडा मजमा लगा हुआ है। अफगानिस्तान के नगाडे क़ी आवाज लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही थी। आज दो बातें घटेंगी। एक दुखद घटना है बच्चों के लिए। स्कूल के बच्चे अपने पिताओं के साथ आये थे। आज उनकी अध्यापिका-टीचर को मौत की सजा मिलेगी। दूसरी ओर विजय पर्व मनाया जा रहा है। यहां का गुरिल्ला दस्ता पडोसीदेशों में आतंकी हमले करके वापस आये है। एक ओर बुरका पहने एक औरत के पीठ के पीछे हाथ बँधे थे। उसके साथ एक अन्य औरत खडी है। पास कुछ सिपाही खडे थे। तभी घोषणा होती है, ''आज मुजरिम शाहनाज को दुश्चरित्र होने के अपराध में गोली मारकर मृत्युदण्ड दिया जायेगा। उसके बाद यहाँ जश्न-खुशी मनायी जायेगी। थोडी ही देर में युवकों का विजयी गुरिल्ले दस्ते का स्वागत किया जायेगा। आदि...'' घोषणा पूरी होती कि सभी लोग उस ओर देखने लगे जिधर से आसमान में धूल उडती दिखायी दे रही थी। धूल पास आने लगी और साथ ही दो जीपों के आने की आवाज। बन्दूकों से गोलियों के छूटने की आवाज के साथ जीपें रूकी। जीप से सबसे पहले दोसादीन हाथ में मशीनगन लिए कूदा। अफसाना ने हाथ बँधे खडी शाहनाज से कहा, ''शाहनाज
मदद के लिए चीख! वह देखो तेरा मददगार दोसाबीन आ गया है।''
दोसाबीन काफी पास तक
आ गया था। अफसाना दौडक़र,
बढक़र शाहनाज के सर से बुरका उठाती है।
इन्द्रनेट पर हलचल
- सुब्रा नारायण
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