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विजेता                                     - तीसरा पन्ना

'' केशव मुझे रीढ मे दर्द रहता है। सोचती हूं डॉ व्यास से कन्सल्ट कर लिया जाए।''
''
अब रीढ में दर्द हो गया? अम्बिका मुझे तो लगता है, तुम मानसिक रूप से बीमार हो। कोई ग्रन्थि विकार है, ट्रीटमेन्ट चल रहा है, सिस्टम को नॉर्मल होने में समय लगता है। टहलने को एडवाइस किया तो वह करना नहीं है। डॉ व्यास सोचते होगे, अच्छा मुफ्त का मरीज गले पड ग़या।''
''
बता रही हूं, रीढ में तकलीफ है।''
''
तुम्हारी तकलीफ खत्म होने की बजाय बढ रही है तो तुम्हारा ये स्पेशलिस्ट बेकार है। चलो दिल्ली, बॉम्बे कही दिखाया जाए।''

केशव आमतौर पर कटु वचन नहीं कहता, उसे इस समय कुछ व्यवसाय संबंधी अडचन है और वह भडक़ गया

'' अब ये बात भी नही।'' गडबडा गई अम्बिका। वैसे भी उसे रीढ में मामूली तकलीफ थी जो डॉ व्यास के घर जाने का अच्छा बहाना थी।

संस्काराें की वर्जनाएं चेतावनी देती रही, फिर भी अम्बिका स्वयं कार ड्राइव कर डॉ व्यास के घर चल दीउन्हे देखने की, महसूस करने की प्यास सी है जो बुझती नहीप्यास विचित्र होती है, सोचने मात्र से लग आती है, फिर बुझाए नही बुझतीडोर बैल बजाने पर मिठ्ठू आया और अम्बिका को ड्राइंग रूम में बिठा कर भीतर डॉ व्यास को सूचित करने चला गयापहले मिठ्ठू अब डॉ व्यास निकलेगेइस घर के नियम शायद कभी नहीं बदलतेडॉ व्यास खादी के सफेद कुर्ते पैजामे और उलझे-बिखरे बालों में भव्य लग रहे थेउन्होने आते ही इधर उधर गर्दन घुमाकर कमरे में फैली खुशबू का स्रोत जानना चाहाअम्बिका झिझकी कि जल्दबाजी में परफ्यूम का प्रयोग कुछ अधिक कर लिया हैअसभ्यता सूचकखुशबू बस इतनी ही जो प्राकृतिक लगे

'' अकेली आई है?''

अम्बिका की झिझक बढ र्ग़ई इस तरह अकेले आने को डॉ व्यास गलत अर्थ में तो नहीं लेगे

'' पुराणिकजी को फुर्सत नहीं तो।''
''
तो आप पढी-लिखी स्त्रियां पति पर इतना डिपैन्ड क्यों रहना चाहती है? आपको तकलीफ है और तकलीफ को गंभीरता से लेकर आप दिखाने आई है, यह अच्छी बात है। आजकल लोगो में अवेयरनैस आ गई है। यह मैं कहूंगा। हां, आप फोन पर कुछ प्रॉब्लम बता रही थी।''

डॉ व्यास की आंखे खिल उठीडॉ व्यास आपकी खिली आंखे मिथ्या अथवा कृत्रिम नहीं हैये मेरा स्थान तय करती है वह स्थान जानना चाहती हूं

'' पेट ऑलमोस्ट ठीक है। बैकबोन की प्रॉब्लम है।''
''
लेट जाइए, देख लेते है।''

अम्बिका वांछित एकान्त में मनचाहे व्यक्ति का स्पर्श महसूसती रही - महसूसती रही...महसूसती रही

'' कुछ नहीं है। रिकवरी सैटिसफैक्टरी है। ट्रीटमेन्ट कन्टीन्यू रखे। एक बार पेट का अल्ट्रासाउन्ड करा ले, कम्पेयर हो जाएगा।''
''
ठीक है।''
''
चाय पीजियेगा? मिठ्ठू बना रहा है।''

तो आप, डॉ व्यास मुझे चाय के बहाने रोकना चाहते है? जी तो करता है, यहीं बस जाऊं पर-

'' पी लूंगी।''

और चाय पीते हुए अम्बिका को एक भी कायदे की बात नही सूझी जो वहां रुके रहने का कारण बनतीऔर डॉ व्यास ही कहां कुछ कह पाएकमरे में मौन था और आरामदेह लग रहा थाचाय खत्म कर अम्बिका चलने को उध्दत हुईवे रोकना चाहते थे पर रोकने का कोई कारण नहीं मिला वे रास्ते भर उनकी समीक्षा करती रही - डॉ व्यास आप अरसिक है या विमूढ? क्या आप बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहे है, मैं आप की ओर आकर्षित हूं, और आप के पास जाने के बहाने ढूंढती हूं? और यदि आप ये कहे, स्त्री का मन भांप कर ही पुरुष आगे बढता है तो मन कोई किताब तो नहीं जिसे खोलकर कहूं, इसमें आप के लिए संदेश हैआप शायद शुरुआत करने से डरते हैयह शुरुआत बहुत कठिन, लगभग असंभव सी स्थिति क्यों होती है?

'' केशव, अभी एक दिन डॉ व्यास मार्केट में मिल गए थे। एक बार फिर अल्ट्रासाउन्ड कराने को कहा है।'' अम्बिका ने डॉ व्यास के घर जाना छिपा लिया।

इस तरह के झूठ, मक्कारियां, चोरी, लुकाव-छिपाव, छल गृहस्थी को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी होते है

'' संडे को चलते है।'' केशव ने नहीं पूछा, डॉ व्यास ने और क्या कहा। केशव हर बात को इतने ठंडे और सहज ढंग से कैसे ले पाता है, अचंभित होती है अम्बिका। इधर के वर्षो में केशव की उपस्थिति खीझ से भरती रही है और उसकी क्षमताओं और विशेषताओं को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि अब जब उसे फिर से सबकुछ अच्छा और सुंदर लगने लगा है तब पता चल रहा है केशव के साथ जिंदगी अच्छी ही बीत रही थी, रही है। धन दौलत, बच्चे, मान मर्यादा, ऐसी कोई कमी नहीं है जो सचमुच कमी समझी जाए। शायद वह अपनी सुविधा-संपन्न भूमिका से ऊबने लगी थी।

अल्ट्रासाउन्ड की रिर्पोट आ गईअम्बिका रिर्पोट दिखाने अकेली जाना चाहती थी, पर बार-बार यह अशोभन लगेगा

'' केशव हमें वेडिंग रिसेप्शन में जाना है, उसी तरफ से डॉ व्यास को रिर्पोट दिखा लेगे।'' अम्बिका बोली।
''
कभी-कभी तुम भी यार दिमाग से काम ले लेती हो।'' केशव ने चुहल की - '' पर ऐसी सजी बजी हो कि लगता नहीं डॉक्टर को दिखाने जा रही हो।''
''
पार्टी में पेशेन्ट बनकर भी नही जाया जा सकता।''
''
ये भी ठीक है।''

इस बार डॉ व्यास के घर पर दृश्य बदला हुआ थाडॉ व्यास दीवान पर आसन लगाए दो छोटे बच्चों के साथ शतरंज खेल रहे थे और उनकी पत्नी मोक्षदा व्यास दर्शक बनी हुई थीअम्बिका निराश हुई सजधज कर समाधि भंग कर डालने आई है और यहां

डॉ व्यास ने अम्बिका को भरपूर निगाह से देखा -

'' आइए।''
''
अल्ट्रासाउन्ड की रिर्पोट।''

केशव ने लिफाफा मेज पर रख दिया

'' हां-हां, वन मिनट।ये मेरी वाइफ और मोक्षदा, ये केशव पुराणिक, ये मिसेस पुराणिक।''

डॉ व्यास ने परिचय करायाअम्बिका ने देखा मध्य ऊंचाई की कुछ भरी देह की सांवली सी स्त्री, कुल मिलाकर ठीकठाक, डॉ व्यास से तुलना करे तो सामान्य और अम्बिका से तुलना करे तो अति सामान्यचेहरे की दूधिया, स्निर्ग्धमहीन त्वचा और केशव का भूरा स्याहपन अम्बिका की उम्र का पता नहीं चलने देतावह अति सामान्य स्त्री अम्बिका को आक्रान्त कर रही है

डॉ व्यास अंग्रजी में श्रीनिकेत का उल्लेख करते हुए अम्बिका की हिस्ट्री मोक्षदा को बताते रहेअम्बिका अंग्रेजी अच्छी तरह बोल नहीं पाती पर समझती हैमोक्षदा सिर की जुम्बिश देते हुए डॉ व्यास की बातें ध्यान पूर्वक सुनती रहीडॉ व्यास का ध्यान आज पूरी तरह पत्नी पर केंद्रित थाअम्बिका को मोक्षदा सेर् ईष्या हुईकिस कुसाइत में यहां आई उसने डॉ व्यास को ताकाउसे डॉ व्यास असहज लगे जैसे समझ न पा रहे हो इस स्थिति को कैसे लेडॉ व्यास आप मोक्षदा के साथ कई वर्षो से साथ रहने की त्रासदी की तरह नहीं लेते? एकसरता, दोहराव आपके भीतर जडता नहीं भरता? आपको किसी परिवर्तन, नवीनता, अनोखेपन की चाह नही? आप खुश है?

डॉ व्यास अल्ट्रासाउन्ड रिर्पोट देखते हुए बोले -

'' रिर्पोट तो ठीक है। बीमारी के लक्षण वाशआउट हो गए है। आरसीनेक्स लेते रहना है।''

कहते हुए उन्होने अपने घोडे क़ो ढाई घर चला कर चाल चलीअम्बिका पीडित हो गई डॉ व्यास अब आप असहनीय हो रहे है इस तरह मेरी उपेक्षा का कारण? पत्नी का खौफ?

'' डॉक साब हमें इजाजत दीजिए, एक रिसेप्शन में जाना है।''

केशव को समझ गया, आज डॉ व्यास का चित्त बच्चों और खेल में रमा है

'' ओ  क़े '' ड़ॉ व्यास औपचारिकतावश उठ कर खडे हो गए।
''
बहुत दिनो के बाद बच्चे अपने पापा से मिले है तो शतरंज खेला जा रहा है।'' मोक्षदा ने न जाने क्या सोचकर या कुछ न सोचकर कहा।
''
सॉरी हमने डिस्टर्ब किया।'' केशव की संकोची वृत्ति मुखर हो गई।
''
ऐसी कोई बात नहीं।'' डॉ व्यास ने कहा पर नित्य की भांति उन्हे बाहर छोडने नहीं आए।

अम्बिका का चेहरा पराजय के भाव से बुझ गयाकल्पानाओं ख्यालों में मनुष्य कितना स्वत्रंत्र, स्वछन्द और मौजूं होता हैजो सोचता है पा लेता है और यथार्थ के अपने दबाव, कटुताएं, सीमाएं हैअम्बिका को अभी-अभी सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था और अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा हैकिसी ने खूब कहा है, मन हारे हार है, मन के जीते जीतअधिकार जैसी स्थिति नहीं बनी है फिर भी वह डॉ व्यास पर अपना अधिकार समझने लगी हैक्यों उसे लगता है, डॉ व्यास को उसकी जरूरत होनी चाहिए? क्यों होता है ऐसा जब खुद पर खुद का नियंत्रण नहीं रहता?

विपुल प्रकाश से जगर-मगर करता वैवाहिक पंडाल अम्बिका को धूसर-स्याह प्रतीत हो रहा थाबाह्य वातावरण का अपना व्यक्तित्व कुछ नहीं होता, वह वैस ही दिखाई पडता हैहम खुश है तो बाहर भी खुशी दिखाई देती है और हम दु:खी है तो सब कुछ विषाद भरा हो जाता है अम्बिका मन को साधना चाहती है पर वह दांव हार चुकी हैवह इतनी कुपित और पीडित है कि चाहती है डॉ व्यास अब कभी याद न आएंवह उन्हे भूलना चाहती है, वे याद आते हैभूलने का प्रयास तेज करती है, वे शिद्दत से याद आते है, वह अपनी दुनिया से डॉ व्यास को निकालना चाहती है पर उसकी दुनिया डॉ व्यास के एहसास से बनी हुई है और उनके निकल जाने पर दुनिया के नष्ट होने का अम्देशा हैअम्बिका ने डॉ व्यास का निर्लिप-निराशाजनक व्यवहार सहन नहीं हो पा रहाहार स्वीकारने के लिए विजेता का सा जिगर चाहिए

डॉ व्यास आपने मेरी उपेक्षा क्यों की? मैं चेतर्न अवचेतन दशा में आपके साथ जीती रही हूंमुझसे तिरस्कार सहा न जाएगा आप इस तरह मेरे आत्मबल को क्षीण करेगें जबकि चिकित्सक होने के नाते आप जानते ही होगे, रोगी के लिए दवाई से अधिक आत्मबल जरूरी होता हैअम्बिका शायद सैडिस्ट होती जा रही हैउसे लगता है, कोई उसका नाम पुकार रहा है - डॉ व्यास, दिशाएं, हवाएं, शून्य हीवह डॉ व्यास का नंबर डायल करती, वे हलो-हलो करते और अम्बिका मौनउनके स्वर में झलकती परेशानी से उसे आनंद मिलताबदला लेने का संतोष प्रतिशोध की आदिम वृत्ति प्राय: सभी में होती है

दिन बहुत मंद और सुस्त हो गए बडी क़ठिनाई से दो माह बीते और तब जाकर डॉ व्यास के घर रूटीन चेकअप के बहाने जाने का सुयोग हुआअम्बिका को आशा थी डॉ व्यास का जो संतुलित आचरण था वह मोक्षदा के खौफ के कारण, अब वे पहले की तरह गरमजोशी से पेश आएंगेयह सोचते हुए उसके भीतर आशा की स्फुलिंग हुईपर यहां डॉ व्यास के व्यवहार का संतुलन कायम थाअम्बिका का दिल बैठने लगा ये मेरी कलाई थाम नब्ज क्यों नहीं देखते? ब्लडप्रेशर ही चेक करें, पेट का मुआयना, कुछ नहींबेवकूफ आदमीकहना पडा -

'' ब्लडप्रेशर चेक कीजिए?''
''
ऐनी प्रॉब्लम?''
''
सीढियां चढ क़र आई तो लगा, दम फूल रहा है।''
''
क़ुछ नहीं हैं। इसलिए मैं एकसरसाइज पर, टहलने पर जोर देता हूं। शरीर को जितना आराम दो, वह आराम का आदी हो जाता है, सुस्ती आती है।'' डॉ व्यास ने दो टूक कहा।
''
डॉक साब ये इधर सुस्त पडी रहती है।'' केशव ने जानकारी दी।

डॉ व्यास आप जिम्मेदार है

'' यह ठीक नहीं, मुझे लगता है, आप ठीक से खाती पीती नहीं है। अपना ध्यान रखिए। ट्रीटमेन्ट को लगभग सात माह हो रहे है। कोर्स नौ माह का है पर एहतियात के तौर पर आप एक साल तक दवा लें। ठीक रहेगा।''

फिर उन्होने केशव से कुछ औपचारिक बातें की, अम्बिका की ओर देखने की आवश्यकता नहीं समझीअम्बिका के भीतर क्रोध, खीझ, निसहायता का आवेग उमडाडॉ व्यास आप शहर के सफलतम चिकित्सक होगें पर निहायत अक्षम और बेवकूफ हैतभी मेरे मन के भाव नहीं ताड पा रहे हैक्या सचमुच आप मुझसे थोडा भी प्रभावित नहीं है? आप पेशेन्ट से लगाव रख सकते है और क्यों रखे, पर मैं फकत मरीज नहीं, सुंदर और आकर्षक भी हूंलोग मेरी ओर आकृष्ट होते रहे हैयह पहला मौका है जब मै किसी की ओर आकर्षित हूं और आप समझते नहीं

अम्बिका को नींद नहीं आ रही है वह विजय की उद्धोषणा का इंतजार कर रही थी और विजय का आभास ही गलत साबित हो रहा हैवह जैसे अब तक जिस घर, मोहल्ले, दुनिया में बडे अधिकार और निश्चिंतता के साथ रह रही थी, वह किसी प्रभावशाली व्यक्ति के आदेश पर इस कदर उजाड दी गई है कि लगता नही कभी यहां एक भरा पूरा संसार आबाद थाउसे लगा, गहन दु:ख, विषाद, पीडा के प्रहर से सिकुड क़र वह मुटठी भर रह गई हैरीढ क़ी हड्डी में सधाव नहीं रहा, आंतरिक अंग एकाएक गायब हो गए है और भीतर एक विशाल शून्य उभर रहा है

अम्बिका आखिर चाहती क्या है? अपनी वास्तविक जिंदगी के समानांतर एक और जिंदगीजो इच्छानुसार, सुविधानुसार रची-बुनी जाएएक जिंदगी केशव के साथ दूसरी डॉ व्यास के साथएक जिंदगी क्रेंद पर दूसरी परिधि पर हो और यह क्रम जिंदगी के अंतिम क्षण तक निर्बाध चलता रह सके एक दो बार डॉ व्यास सार्वजनिक स्थलों पर मिले किंतु अम्बिका को अनदेखा कर गएयह तकलीफदेह थाअम्बिका उदास हो गई जीवनशक्ति समाप्तकोई उद्दीपन नहीं, स्फुलिंग नहींकभी पेट में ऐठन, कभी छाती में दर्द, कभी भारीपन का एहसास, कभी सांस फूलती जान पडती हैदेह ताप से जल रही है तो मस्तिष्क पर दबाब है, अब स्मृति लोप हो रही है, छोटी छोटी बातों, चीजों, नामों को याद रखना दूभर हो रहा हैअस्थि-मज्जा, अवयवों, मांसपेशियों, रक्त, वजन का त्वरा से क्षरण हो रहा है और अंत समय निकट आता प्रतीत हो रहा है

'' केशव मुझे ताप है।''
''
नहीं तो।'' केशव ने उसका भाल, कपोल,गला,हथेली टटोल डाली।
''
मुझे लगता है।''
''
अम्दरूनी बुखार हो सकता है। तुम सुस्त दिखती हो।''
''
कुछ अच्छा नही लगता। केशव मैं कभी ठीक नही हो सकती।''अम्बिका ने बहुत कातर भाव से कहा तो केशव ने भावुक हो कर उसे अपनी बाहों मे घेर लिया।
''
पागल हो। कोर्स पूरा होने को है और कहती हो, ठीक नही हो सकती।''
अम्बिका का जी भर आया - '' ऐसा लगता है।''
''
कहो तो बॉम्बे हॉस्पिटल मे दिखा लाऊं। सेकेन्ड ओपिनीयनन मिल जाएगी और हमें भी विश्वास हो जाएगा, उपचार सही लाइन पर हुआ। कई बार मरीज को लगता है, उसका उपचार सही तरह नहीं हो रहा है और वह मानसिक रूप से परेशान रहता है।''
''
इलाज तो ठीक हुआ।''
''
तुम खुश रहा करो।''
''
हूं।''
''
कोर्स पूरा हो जाए तो ट्रीटमेन्ट फाइनली बंद करने से पहले डॉ व्यास से पूछ लेगे।''
''
यह ठीक होगा।''

एक वर्ष पूरा हो गयाअम्बिका ने डॉ व्यास के प्रति निरपेक्ष हो जाने की बहुत कोशिश की, पर अब चीजे उसके हाथ में नहीं रहीउसने पाया, न चाहते हुए भी वह रुचि के साथ तैयार हो रही हैगुलाबी फूलों वाली साडी और हल्के मेकअप में उसकी त्वचा गुलाबी दिख रही हैजाने से पहले श्रीनिकेत आ टपका

'' श्रीनिकेत तुम भी चलो।'' केशव ने प्रस्ताव रखा।
''
चल पडूंगा। व्यास से मिलना अच्छा लगता है। आज इतवार है फोन पर पूछ लेते है, वह घर पर है या नहीं?

श्रीनिकेत ने कहा तो केशव ने उसे कॉर्डलेस पकडा दियाश्रीनिकेत और डॉ व्यास की लंबी बात हुईबात समाप्त कर श्रीनिकेत, केशव से कहने लगा -

'' बिना गए ही काम बन गया, व्यास कह रहा है, दवा बंद कर दे, दिखाने की जरूरत नहीं है।''

अम्बिका शुरुआत के पूर्व अंत हो जाने के आघात से निसहाय हो उठीतो क्या डॉ व्यास कभी मुझसे प्रभावित नहीं रहें? जाकी रही भावना जैसी के सुरूर मे मैं ही उनकी आंखो में चमक, चेहरे में उत्साह, स्वर में आह्लाद ढूंढती रही? हे भगवान क्या ये ही सच है? अंतिम सत्य? उसने गहरी असहायता में खुद को ईश्वर के भरोसे छोड दियाशिकायत के तौर पर बोली -

'' डॉ व्यास हमें टाल रहे है। उन्हे हम फीस नहीं देते और डॉक्टर्स अब बहुत प्रोफेशनल हो गए है।''
केशव ने हस्तक्षेप किया - '' फीस हमने दी थी, उन्होने नहीं ली।''
''
बेकार बात, तुम लोग व्यास से मेरे नजदीकी संबंध को समझ नहीं रहे हो। वह मेरे मामले में पैसे की बात सोच नहीं सकता। उसने आवश्यकता नहीं समझी होगी इसलिए रोक दिया। और फिर जो बात फोन पर हुई वही वहां होती।''
श्रीनिकेत ने अम्बिका और केशव की बात का जोरदार खंडन किया।

अम्बिका ने सुलगती दृष्टि से श्रीनिकेत को निहारा - मैं आत्मवध की सी निराशाजन्य वेदना से जूझरही हूं और यह चंडाल डॉ व्यास के पक्ष मे दलीले देने बैठा है

'' ठीक है। फीस न लेना डॉ व्यास का बडप्पन है। हमें भी बडप्पन दिखाते हुए उन्हे कुछ गिफ्ट देना चाहिए।''
अम्बिका आशाओं से रिक्त हो जाने को तैयार नहीं।
''
ये बात अपील करती है। दीपावली आने को है। त्योहार के बहाने हम उन्हे मिठाई और गिफ्ट दे सकते है।'' केशव सहमत हो गया।
''
तुम लोग जैसा ठीक समझों।'' श्रीनिकेत ने फिर हस्तक्षेप नहीं किया।

अम्बिका दीपावली की खरीदारी के लिए बाजार गईतमाम आवश्यक वस्तुओं के साथ उसने डॉ व्यास के लिए कीमती रिस्ट वॉच खरीदीफांसी पर चढाए जाने वाले मुजरिम की भी अंतिम इच्छा पूरी की जाती है, उसे विश्वास है डॉ व्यास यह तुच्छ भेंट स्वीकार कर लेगें

दीपावली के दूसरे दिन श्रीनिकेत त्योहार की शुभकामनाएं देने आयाकेशव ने पूछा -

'' तो फिर डॉ व्यास के घर कब चलना है?''
अम्बिका खिन्न र्हुई श्रीनिकेत साथ में हो ही जरूरी है?
''
अच्छा अच्छा, गिफ्ट देना है? क्या दे रहे हो भाई?''
श्रीनिकेत तनिक उत्साहित हुआ।
''
रिस्ट वॉच।''
''
व्यास दीपावली पर बच्चों के पास इटारसी न चला गया हो? फोन पर पता करुं?''
फिर फोन। यह टेलीफोन इजाद न होता तो अम्बिका सुखी होती।
''
हां, यह ठीक होगा।'' केशव बोला।
डॉ व्यास फोन पर है। अम्बिका के प्राण लौटे।
''
व्यास तुम दीपावली पर इटारसी नही गए?''
'' ''
''
अच्छा मैं कल तुम्हारे घर आना चाहता हूं, केशव और अम्बिका भाभी साथ होगी  तबियत ठीक है बस यूं ही क्यों क्या वे लोग आत्मीयता बतौर तुम्हे कुछ गिफ्ट देना चाहते है।''
''''
''
जरूरत नहीं है पर तुम फीस लेते नहीं हो, केशव को संकोच होता है।''

बात नहीं बनेगी क्या? अम्बिका आतंकित हो गईडॉ व्यास क्या कह रहे है? वह आवेशित सी उठी और शयन कक्ष में जाकर पैरेलल लाइन पर वार्ता सुनने लगीवह खुद को रोक नहीं पा रही है

'' कैसा संकोच श्रीनिकेत? न जाने कितने घूसखोर अधिकारी है जिन्हे उनके घर जाकर बिना फीस के देखना पडता है फिर ये लोग तो तुम्हारे मित्र है। फीस? यह तो कोई बात नहीं हुई।''

अम्बिका जैसे युगों बाद डॉ व्यास सुनरही है

'' मैं समझता हूं पर ये बेवकूफ केशव समझे तब न।'' श्रीनिकेत का ठहाका गूंजा।
''
ये लोग मुझे परेशानी में डालेंगे।''
''
परेशानी में तो तुमने इन लोगो को डाल रखा है। अम्बिका भाभी ने जब भी रूटीन चेकअप करने के लिए आना चाहा तुमने टाल दिया। कभी गई तो तुमने ठीक से न देखकर कह दिया, दवा कन्टीन्यू रखे। पेशेन्ट मानसिक रूप से कमजोर हो जाते है, इसलिए भावुक भी। सोचने लगते है, डॉक्टर लापरवाही बरत रहा है। आखिर उसे फीस नहीं मिल रही है।''
''
ओ गॉड दरअसल...दरअसल श्रीनिकेत तुमसे कहूं न कहूं दरअसल यह लेडी मुझे अपनी ओर खींचती है। आकर्षित करती है। और यह सब ठीक नहीं। हम समाज में रहते है। वाइफ है, बच्चे है एक  बार  जब यह लेडी घर आई तो मेरी वाइफ आई हुई थी अब फोन पर क्या कहूं फिर कभी तुमसे बात करूंगा।
''
क्या बेवकूफी है?''
''
मै हैरान हूं। कभी शो हो जाएगा तो पुराणिक जी पता नहीं क्या रिऐक्ट करेंगे अम्बिका जी तो शायद मुझे संदिग्ध समझ कर गाली देंगी। प्लीज तुम उन्हे रोक देना, गिफ्ट देकर मुझे संकोच में न डालें।''
''
देखता हूं।''

डॉ व्यास ने रिसीवरख दियास्वर गुम हो गयाअम्बिका बढ ग़ई हृदय गति को संभालते हुए बहुत आहिस्ता से बिछावन पर बैठ गईजैसे डर हो, कोई बहुत नरम कोमल अहसास बहुत मामूली धक्के से ही क्षतिग्रस्त हो जाएगासब कुछ अप्रत्याशित हैअद्भुत! उसे एकाएक बहुत बडी ख़ुशी हस्तगत हो गई हैखुशी का प्रभाव इतना घनीभूत है कि उसकी कनपटियां तपने लगीसारी कामनाएं पूर्ण हुई जो चाहा सिध्द हुआवह सफल हैविजेता हैठीक है, डॉ व्यासहमारे सामने समाज और सामाजिक संबंध खडे है, पर मै आपसे भावनात्मक संबंध तो रख सकती हूंआपको पा नहीं सकती, छू नहीं सकती हूं, महसूस तो कर सकती हूंप्लीज मत रोकिए, यह मेरी जीवन शक्ति हैजीवन रागअब इस रिस्ट वॉच का क्या होगा?

आश्चर्य ही कह ले, उसे केशव स्मरण हो आयावह रिस्ट वॉच केशव को दे देगी - दीपावली पर दुनिया के सबसे अच्छे आदमी को छोटी सी भेंटकेशव कहेर्गा मुझे तो अपनी पुरानी घडी प्रिय हैजब मैं कॉलेज में आया था तब पिताजी ने दी थीउनकी याद में ये घडी हमेशा मेरे हाथ मे बंधी रहनी चाहिएतब वह कहेगी - घडी तो बदलनी पडेग़ीऔर ये याद वाली बात है तो यह जो हमारा दिल है, यादों के संग्रह के लिए बहुत सुरक्षित जगह हैयादों को इसमें रख दो, सुरक्षित रहेगी

यह सोचते हुए अम्बिका ने विजेता के अंदाज में कंधे सतर किए, गर्दन को जुम्बिश दी और केशव के पास कला कक्ष में न जाकर चाय बनाने के लिए किचन में चली गईयह उसकी निजी खुशी है निजी मामला है, निजी क्षण है जिन्हे वह अकेले अपने तरह से जीन चाहती है वह इस समय अपने आस पास किसी को भी, डॉ व्यास को भी नहीं चाहतीउसे डर है किसी की उपस्थिती में वह इन क्षणों को खूब अच्छी तरह नहीं जी सकेगी

- सुषमा मुनीन्द्र
 

    . पीछे

इन्द्रनेट पर हलचल - सुब्रा नारायण
अपने अपने अरण्य - नंद भारद्वाज
चिडिया और चील - सुषम बेदी
ठठरी - हरीश चन्द्र अग्रवाल
प्रश्न का पेड - मनीषा कुलश्रेष्ठ
बुध्द की स्वतंत्रता - मालोक
भय और साहस - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
मदरसों के पीछे - रमेशचन्द्र शुक्ल
महिमा मण्डित - सुषमा मुनीन्द्र
विजेता - सुषमा मुनीन्द्र
विश्वस्तर का पॉकेटमार- सधांशु सिन्हा हेमन्त
शहद की एक बूंद - प्रदीप भट्टाचार्य
सम्प्रेषण  - मनीषा कुलश्रेष्ठ
सिर्फ इतनी सी जगह - जया जादवानी

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