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विजेता - तीसरा पन्ना ''
केशव मुझे रीढ मे दर्द रहता
है। सोचती हूं डॉ व्यास से कन्सल्ट कर लिया जाए।'' केशव आमतौर पर कटु वचन नहीं कहता, उसे इस समय कुछ व्यवसाय संबंधी अडचन है और वह भडक़ गया। '' अब ये बात भी नही।'' गडबडा गई अम्बिका। वैसे भी उसे रीढ में मामूली तकलीफ थी जो डॉ व्यास के घर जाने का अच्छा बहाना थी। संस्काराें की वर्जनाएं चेतावनी देती रही, फिर भी अम्बिका स्वयं कार ड्राइव कर डॉ व्यास के घर चल दी। उन्हे देखने की, महसूस करने की प्यास सी है जो बुझती नही। प्यास विचित्र होती है, सोचने मात्र से लग आती है, फिर बुझाए नही बुझती। डोर बैल बजाने पर मिठ्ठू आया और अम्बिका को ड्राइंग रूम में बिठा कर भीतर डॉ व्यास को सूचित करने चला गया। पहले मिठ्ठू अब डॉ व्यास निकलेगे। इस घर के नियम शायद कभी नहीं बदलते। डॉ व्यास खादी के सफेद कुर्ते पैजामे और उलझे-बिखरे बालों में भव्य लग रहे थे। उन्होने आते ही इधर उधर गर्दन घुमाकर कमरे में फैली खुशबू का स्रोत जानना चाहा। अम्बिका झिझकी कि जल्दबाजी में परफ्यूम का प्रयोग कुछ अधिक कर लिया है। असभ्यता सूचक। खुशबू बस इतनी ही जो प्राकृतिक लगे। '' अकेली आई है?'' अम्बिका की झिझक बढ र्ग़ई इस तरह अकेले आने को डॉ व्यास गलत अर्थ में तो नहीं लेगे। ''
पुराणिकजी को फुर्सत नहीं
तो।'' डॉ व्यास की आंखे खिल उठी। डॉ व्यास आपकी खिली आंखे मिथ्या अथवा कृत्रिम नहीं है। ये मेरा स्थान तय करती है। वह स्थान जानना चाहती हूं। ''
पेट ऑलमोस्ट ठीक है। बैकबोन
की प्रॉब्लम है।'' अम्बिका वांछित एकान्त में मनचाहे व्यक्ति का स्पर्श महसूसती रही - महसूसती रही...महसूसती रही। ''
कुछ नहीं है। रिकवरी
सैटिसफैक्टरी है। ट्रीटमेन्ट कन्टीन्यू रखे। एक बार पेट का अल्ट्रासाउन्ड
करा ले,
कम्पेयर हो जाएगा।'' तो आप, डॉ व्यास मुझे चाय के बहाने रोकना चाहते है? जी तो करता है, यहीं बस जाऊं पर- '' पी लूंगी।'' और चाय पीते हुए अम्बिका को एक भी कायदे की बात नही सूझी जो वहां रुके रहने का कारण बनती। और डॉ व्यास ही कहां कुछ कह पाए। कमरे में मौन था और आरामदेह लग रहा था। चाय खत्म कर अम्बिका चलने को उध्दत हुई। वे रोकना चाहते थे पर रोकने का कोई कारण नहीं मिला । वे रास्ते भर उनकी समीक्षा करती रही - डॉ व्यास आप अरसिक है या विमूढ? क्या आप बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहे है, मैं आप की ओर आकर्षित हूं, और आप के पास जाने के बहाने ढूंढती हूं? और यदि आप ये कहे, स्त्री का मन भांप कर ही पुरुष आगे बढता है तो मन कोई किताब तो नहीं जिसे खोलकर कहूं, इसमें आप के लिए संदेश है। आप शायद शुरुआत करने से डरते है। यह शुरुआत बहुत कठिन, लगभग असंभव सी स्थिति क्यों होती है? '' केशव, अभी एक दिन डॉ व्यास मार्केट में मिल गए थे। एक बार फिर अल्ट्रासाउन्ड कराने को कहा है।'' अम्बिका ने डॉ व्यास के घर जाना छिपा लिया। इस तरह के झूठ, मक्कारियां, चोरी, लुकाव-छिपाव, छल गृहस्थी को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी होते है। '' संडे को चलते है।'' केशव ने नहीं पूछा, डॉ व्यास ने और क्या कहा। केशव हर बात को इतने ठंडे और सहज ढंग से कैसे ले पाता है, अचंभित होती है अम्बिका। इधर के वर्षो में केशव की उपस्थिति खीझ से भरती रही है और उसकी क्षमताओं और विशेषताओं को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। बल्कि अब जब उसे फिर से सबकुछ अच्छा और सुंदर लगने लगा है तब पता चल रहा है केशव के साथ जिंदगी अच्छी ही बीत रही थी, रही है। धन दौलत, बच्चे, मान मर्यादा, ऐसी कोई कमी नहीं है जो सचमुच कमी समझी जाए। शायद वह अपनी सुविधा-संपन्न भूमिका से ऊबने लगी थी। अल्ट्रासाउन्ड की रिर्पोट आ गई।अम्बिका रिर्पोट दिखाने अकेली जाना चाहती थी, पर बार-बार यह अशोभन लगेगा। ''
केशव हमें वेडिंग रिसेप्शन
में जाना है,
उसी तरफ से डॉ व्यास को
रिर्पोट दिखा लेगे।''
अम्बिका बोली। इस बार डॉ व्यास के घर पर दृश्य बदला हुआ था। डॉ व्यास दीवान पर आसन लगाए दो छोटे बच्चों के साथ शतरंज खेल रहे थे और उनकी पत्नी मोक्षदा व्यास दर्शक बनी हुई थी। अम्बिका निराश हुई। सजधज कर समाधि भंग कर डालने आई है और यहां डॉ व्यास ने अम्बिका को भरपूर निगाह से देखा - ''
आइए।'' केशव ने लिफाफा मेज पर रख दिया। '' हां-हां, वन मिनट।ये मेरी वाइफ और मोक्षदा, ये केशव पुराणिक, ये मिसेस पुराणिक।'' डॉ व्यास ने परिचय कराया। अम्बिका ने देखा मध्य ऊंचाई की कुछ भरी देह की सांवली सी स्त्री, कुल मिलाकर ठीकठाक, डॉ व्यास से तुलना करे तो सामान्य और अम्बिका से तुलना करे तो अति सामान्य। चेहरे की दूधिया, स्निर्ग्धमहीन त्वचा और केशव का भूरा स्याहपन अम्बिका की उम्र का पता नहीं चलने देता। वह अति सामान्य स्त्री अम्बिका को आक्रान्त कर रही है। डॉ व्यास अंग्रजी में श्रीनिकेत का उल्लेख करते हुए अम्बिका की हिस्ट्री मोक्षदा को बताते रहे। अम्बिका अंग्रेजी अच्छी तरह बोल नहीं पाती पर समझती है। मोक्षदा सिर की जुम्बिश देते हुए डॉ व्यास की बातें ध्यान पूर्वक सुनती रही। डॉ व्यास का ध्यान आज पूरी तरह पत्नी पर केंद्रित था। अम्बिका को मोक्षदा सेर् ईष्या हुई। किस कुसाइत में यहां आई। उसने डॉ व्यास को ताका। उसे डॉ व्यास असहज लगे जैसे समझ न पा रहे हो इस स्थिति को कैसे ले। डॉ व्यास आप मोक्षदा के साथ कई वर्षो से साथ रहने की त्रासदी की तरह नहीं लेते? एकसरता, दोहराव आपके भीतर जडता नहीं भरता? आपको किसी परिवर्तन, नवीनता, अनोखेपन की चाह नही? आप खुश है? डॉ व्यास अल्ट्रासाउन्ड रिर्पोट देखते हुए बोले - '' रिर्पोट तो ठीक है। बीमारी के लक्षण वाशआउट हो गए है। आरसीनेक्स लेते रहना है।'' कहते हुए उन्होने अपने घोडे क़ो ढाई घर चला कर चाल चली।अम्बिका पीडित हो गई। डॉ व्यास अब आप असहनीय हो रहे है। इस तरह मेरी उपेक्षा का कारण? पत्नी का खौफ? '' डॉक साब हमें इजाजत दीजिए, एक रिसेप्शन में जाना है।'' केशव को समझ गया, आज डॉ व्यास का चित्त बच्चों और खेल में रमा है। ''
ओ क़े
''
ड़ॉ व्यास औपचारिकतावश उठ कर
खडे हो गए। अम्बिका का चेहरा पराजय के भाव से बुझ गया। कल्पानाओं ख्यालों में मनुष्य कितना स्वत्रंत्र, स्वछन्द और मौजूं होता है। जो सोचता है पा लेता है और यथार्थ के अपने दबाव, कटुताएं, सीमाएं है। अम्बिका को अभी-अभी सब कुछ बहुत अच्छा लग रहा था और अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। किसी ने खूब कहा है, मन हारे हार है, मन के जीते जीत। अधिकार जैसी स्थिति नहीं बनी है फिर भी वह डॉ व्यास पर अपना अधिकार समझने लगी है। क्यों उसे लगता है, डॉ व्यास को उसकी जरूरत होनी चाहिए? क्यों होता है ऐसा जब खुद पर खुद का नियंत्रण नहीं रहता? विपुल प्रकाश से जगर-मगर करता वैवाहिक पंडाल अम्बिका को धूसर-स्याह प्रतीत हो रहा था। बाह्य वातावरण का अपना व्यक्तित्व कुछ नहीं होता, वह वैस ही दिखाई पडता है। हम खुश है तो बाहर भी खुशी दिखाई देती है और हम दु:खी है तो सब कुछ विषाद भरा हो जाता है। अम्बिका मन को साधना चाहती है पर वह दांव हार चुकी है। वह इतनी कुपित और पीडित है कि चाहती है डॉ व्यास अब कभी याद न आएं। वह उन्हे भूलना चाहती है, वे याद आते है। भूलने का प्रयास तेज करती है, वे शिद्दत से याद आते है, वह अपनी दुनिया से डॉ व्यास को निकालना चाहती है पर उसकी दुनिया डॉ व्यास के एहसास से बनी हुई है और उनके निकल जाने पर दुनिया के नष्ट होने का अम्देशा है। अम्बिका ने डॉ व्यास का निर्लिप-निराशाजनक व्यवहार सहन नहीं हो पा रहा। हार स्वीकारने के लिए विजेता का सा जिगर चाहिए। डॉ व्यास आपने मेरी उपेक्षा क्यों की? मैं चेतर्न अवचेतन दशा में आपके साथ जीती रही हूं। मुझसे तिरस्कार सहा न जाएगा। आप इस तरह मेरे आत्मबल को क्षीण करेगें जबकि चिकित्सक होने के नाते आप जानते ही होगे, रोगी के लिए दवाई से अधिक आत्मबल जरूरी होता है। अम्बिका शायद सैडिस्ट होती जा रही है। उसे लगता है, कोई उसका नाम पुकार रहा है - डॉ व्यास, दिशाएं, हवाएं, शून्य ही। वह डॉ व्यास का नंबर डायल करती, वे हलो-हलो करते और अम्बिका मौन। उनके स्वर में झलकती परेशानी से उसे आनंद मिलता। बदला लेने का संतोष। प्रतिशोध की आदिम वृत्ति प्राय: सभी में होती है। दिन बहुत मंद और सुस्त हो गए। बडी क़ठिनाई से दो माह बीते और तब जाकर डॉ व्यास के घर रूटीन चेकअप के बहाने जाने का सुयोग हुआ। अम्बिका को आशा थी डॉ व्यास का जो संतुलित आचरण था वह मोक्षदा के खौफ के कारण, अब वे पहले की तरह गरमजोशी से पेश आएंगे। यह सोचते हुए उसके भीतर आशा की स्फुलिंग हुई। पर यहां डॉ व्यास के व्यवहार का संतुलन कायम था। अम्बिका का दिल बैठने लगा। ये मेरी कलाई थाम नब्ज क्यों नहीं देखते? ब्लडप्रेशर ही चेक करें, पेट का मुआयना, कुछ नहीं। बेवकूफ आदमी। कहना पडा - ''
ब्लडप्रेशर चेक कीजिए?'' डॉ व्यास आप जिम्मेदार है। '' यह ठीक नहीं, मुझे लगता है, आप ठीक से खाती पीती नहीं है। अपना ध्यान रखिए। ट्रीटमेन्ट को लगभग सात माह हो रहे है। कोर्स नौ माह का है पर एहतियात के तौर पर आप एक साल तक दवा लें। ठीक रहेगा।'' फिर उन्होने केशव से कुछ औपचारिक बातें की, अम्बिका की ओर देखने की आवश्यकता नहीं समझी। अम्बिका के भीतर क्रोध, खीझ, निसहायता का आवेग उमडा। डॉ व्यास आप शहर के सफलतम चिकित्सक होगें पर निहायत अक्षम और बेवकूफ है। तभी मेरे मन के भाव नहीं ताड पा रहे है। क्या सचमुच आप मुझसे थोडा भी प्रभावित नहीं है? आप पेशेन्ट से लगाव रख सकते है और क्यों रखे, पर मैं फकत मरीज नहीं, सुंदर और आकर्षक भी हूं। लोग मेरी ओर आकृष्ट होते रहे है। यह पहला मौका है जब मै किसी की ओर आकर्षित हूं और आप समझते नहीं। अम्बिका को नींद नहीं आ रही है। वह विजय की उद्धोषणा का इंतजार कर रही थी और विजय का आभास ही गलत साबित हो रहा है। वह जैसे अब तक जिस घर, मोहल्ले, दुनिया में बडे अधिकार और निश्चिंतता के साथ रह रही थी, वह किसी प्रभावशाली व्यक्ति के आदेश पर इस कदर उजाड दी गई है कि लगता नही कभी यहां एक भरा पूरा संसार आबाद था। उसे लगा, गहन दु:ख, विषाद, पीडा के प्रहर से सिकुड क़र वह मुटठी भर रह गई है। रीढ क़ी हड्डी में सधाव नहीं रहा, आंतरिक अंग एकाएक गायब हो गए है और भीतर एक विशाल शून्य उभर रहा है। अम्बिका आखिर चाहती क्या है? अपनी वास्तविक जिंदगी के समानांतर एक और जिंदगी। जो इच्छानुसार, सुविधानुसार रची-बुनी जाए। एक जिंदगी केशव के साथ दूसरी डॉ व्यास के साथ। एक जिंदगी क्रेंद पर दूसरी परिधि पर हो और यह क्रम जिंदगी के अंतिम क्षण तक निर्बाध चलता रह सके। एक दो बार डॉ व्यास सार्वजनिक स्थलों पर मिले किंतु अम्बिका को अनदेखा कर गए। यह तकलीफदेह था। अम्बिका उदास हो गई। जीवनशक्ति समाप्त। कोई उद्दीपन नहीं, स्फुलिंग नहीं। कभी पेट में ऐठन, कभी छाती में दर्द, कभी भारीपन का एहसास, कभी सांस फूलती जान पडती है। देह ताप से जल रही है तो मस्तिष्क पर दबाब है, अब स्मृति लोप हो रही है, छोटी छोटी बातों, चीजों, नामों को याद रखना दूभर हो रहा है। अस्थि-मज्जा, अवयवों, मांसपेशियों, रक्त, वजन का त्वरा से क्षरण हो रहा है और अंत समय निकट आता प्रतीत हो रहा है। ''
केशव मुझे ताप है।'' एक वर्ष पूरा हो गया। अम्बिका ने डॉ व्यास के प्रति निरपेक्ष हो जाने की बहुत कोशिश की, पर अब चीजे उसके हाथ में नहीं रही। उसने पाया, न चाहते हुए भी वह रुचि के साथ तैयार हो रही है। गुलाबी फूलों वाली साडी और हल्के मेकअप में उसकी त्वचा गुलाबी दिख रही है। जाने से पहले श्रीनिकेत आ टपका। ''
श्रीनिकेत तुम भी चलो।''
केशव ने प्रस्ताव
रखा। श्रीनिकेत ने कहा तो केशव ने उसे कॉर्डलेस पकडा दिया। श्रीनिकेत और डॉ व्यास की लंबी बात हुई। बात समाप्त कर श्रीनिकेत, केशव से कहने लगा - '' बिना गए ही काम बन गया, व्यास कह रहा है, दवा बंद कर दे, दिखाने की जरूरत नहीं है।'' अम्बिका शुरुआत के पूर्व अंत हो जाने के आघात से निसहाय हो उठी। तो क्या डॉ व्यास कभी मुझसे प्रभावित नहीं रहें? जाकी रही भावना जैसी के सुरूर मे मैं ही उनकी आंखो में चमक, चेहरे में उत्साह, स्वर में आह्लाद ढूंढती रही? हे भगवान क्या ये ही सच है? अंतिम सत्य? उसने गहरी असहायता में खुद को ईश्वर के भरोसे छोड दिया। शिकायत के तौर पर बोली - ''
डॉ व्यास हमें टाल रहे है।
उन्हे हम फीस नहीं देते और डॉक्टर्स अब बहुत प्रोफेशनल हो गए है।'' अम्बिका ने सुलगती दृष्टि से श्रीनिकेत को निहारा - मैं आत्मवध की सी निराशाजन्य वेदना से जूझरही हूं और यह चंडाल डॉ व्यास के पक्ष मे दलीले देने बैठा है। ''
ठीक है। फीस न लेना डॉ
व्यास का बडप्पन है। हमें भी बडप्पन दिखाते हुए उन्हे कुछ गिफ्ट देना
चाहिए।'' अम्बिका दीपावली की खरीदारी के लिए बाजार गई। तमाम आवश्यक वस्तुओं के साथ उसने डॉ व्यास के लिए कीमती रिस्ट वॉच खरीदी। फांसी पर चढाए जाने वाले मुजरिम की भी अंतिम इच्छा पूरी की जाती है, उसे विश्वास है डॉ व्यास यह तुच्छ भेंट स्वीकार कर लेगें। दीपावली के दूसरे दिन श्रीनिकेत त्योहार की शुभकामनाएं देने आया। केशव ने पूछा - ''
तो फिर डॉ व्यास के घर कब
चलना है?'' बात नहीं बनेगी क्या? अम्बिका आतंकित हो गई। डॉ व्यास क्या कह रहे है? वह आवेशित सी उठी और शयन कक्ष में जाकर पैरेलल लाइन पर वार्ता सुनने लगी। वह खुद को रोक नहीं पा रही है। '' कैसा संकोच श्रीनिकेत? न जाने कितने घूसखोर अधिकारी है जिन्हे उनके घर जाकर बिना फीस के देखना पडता है फिर ये लोग तो तुम्हारे मित्र है। फीस? यह तो कोई बात नहीं हुई।'' अम्बिका जैसे युगों बाद डॉ व्यास सुनरही है। ''
मैं समझता हूं पर ये बेवकूफ
केशव समझे तब न।''
श्रीनिकेत का ठहाका गूंजा। डॉ व्यास ने रिसीवर रख दिया। स्वर गुम हो गया। अम्बिका बढ ग़ई हृदय गति को संभालते हुए बहुत आहिस्ता से बिछावन पर बैठ गई। जैसे डर हो, कोई बहुत नरम कोमल अहसास बहुत मामूली धक्के से ही क्षतिग्रस्त हो जाएगा। सब कुछ अप्रत्याशित है। अद्भुत! उसे एकाएक बहुत बडी ख़ुशी हस्तगत हो गई है। खुशी का प्रभाव इतना घनीभूत है कि उसकी कनपटियां तपने लगी। सारी कामनाएं पूर्ण हुई। जो चाहा सिध्द हुआ। वह सफल है। विजेता है। ठीक है, डॉ व्यास। हमारे सामने समाज और सामाजिक संबंध खडे है, पर मै आपसे भावनात्मक संबंध तो रख सकती हूं। आपको पा नहीं सकती, छू नहीं सकती हूं, महसूस तो कर सकती हूं। प्लीज मत रोकिए, यह मेरी जीवन शक्ति है। जीवन राग। अब इस रिस्ट वॉच का क्या होगा? आश्चर्य ही कह ले, उसे केशव स्मरण हो आया। वह रिस्ट वॉच केशव को दे देगी - दीपावली पर दुनिया के सबसे अच्छे आदमी को छोटी सी भेंट। केशव कहेर्गा मुझे तो अपनी पुरानी घडी प्रिय है। जब मैं कॉलेज में आया था तब पिताजी ने दी थी। उनकी याद में ये घडी हमेशा मेरे हाथ मे बंधी रहनी चाहिए। तब वह कहेगी - घडी तो बदलनी पडेग़ी। और ये याद वाली बात है तो यह जो हमारा दिल है, यादों के संग्रह के लिए बहुत सुरक्षित जगह है। यादों को इसमें रख दो, सुरक्षित रहेगी। यह सोचते हुए अम्बिका ने विजेता के अंदाज में कंधे सतर किए, गर्दन को जुम्बिश दी और केशव के पास कला कक्ष में न जाकर चाय बनाने के लिए किचन में चली गई। यह उसकी निजी खुशी है। निजी मामला है, निजी क्षण है जिन्हे वह अकेले अपने तरह से जीन चाहती है। वह इस समय अपने आस पास किसी को भी, डॉ व्यास को भी नहीं चाहती। उसे डर है किसी की उपस्थिती में वह इन क्षणों को खूब अच्छी तरह नहीं जी सकेगी। . पीछे
इन्द्रनेट पर हलचल
- सुब्रा नारायण
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