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महिमा मण्डित                            - तीसरा पन्ना

डॉ रामकृष्ण, दो अन्य चिकित्सक, एस पी, सादे कपडों में चार सिपाही देवी के द्वार पर पहुंचे तो आरती हो रही थीघंटे, घडियाल, शंख, भक्तों की समवेत तालियों के मध्य उभरती ओम जय अम्बे मैयाकी ताल! एस पी ने रात का समय इसलिये चुना कि लोग घर लौट चुके होंगेअकेले में प्रकरण अपेक्षाकृत सरलता से सुलझाया जा सकेगा पर आरती के समय खासी भीड एकत्र थी और पूरे जोश और उत्साह में थीइस श्रध्दा और भक्ति को चुनौती देना आसान होगा? एसपी और डॉ रामकृष्ण एक दूसरे को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखते बाहर खडे थेआरती की समाप्ति पर तीरथ प्रसाद उच्चारने लगा -

'' दु:ख निवारण कर मां, कल्याण कर मां, ताप हर मां! ''

एक भक्त आरती का थाल सबके सामने घुमाने लगासिक्के, नोट थाल में डाले जाने लगेआरती के बाद कुछ लोग लौट गए और कुछ देवी के द्वार पर खडी ग़ाडियों और बडे अधिकारियों की उपस्थिति के प्रभाव में वहीं रुके रहेकिसी ने तीरथ प्रसाद को सूचित किया कि एसपी साहब और डॉ साहब आए हैंतीरथ प्रसाद प्रसाद हुलसते हुए बाहर दौडे आए। आज फिर अच्छी चढोत्री का योग हैबडे लोगों से ही बडी राशि मिलती है, गांव के लोग तो एक, दो या ज्यादा हुआ तो पांच रूपये चढा देते हैं

''पधारिये साहब, झटपट दर्शन कीजिए, देवी के ध्यान का समय हो रहा है। आरती की ज्योति जल रही है। आप सब लोग आरती लें। तीरथ प्रसाद अधिकारियों को भीतर ले आए।''

एक भक्त ने अधिकारी समुदाय के साथ घुसे चले आ रहे लोगों को वापस खदेडाएस पी ने चौकस दृष्टि देवी पर डालीदिन भर की थकान से शिथिल पडी देवी पलकें झपका रही थींमुख ऐसे बन बिगड रहा था मानो उबासी को बलपूर्वक रोक रही होकुछ देर कक्ष में निचाट चुप्पी पसरी रही फिर बडे अप्रत्याशित-असंभावित ढंग से चुप्पी भंग हुई

'' बेटी तुम सुबह से रात तक ऐसे बैठी रहती हो थक जाती होगी। तुम्हारी रीढ क़ी हड्डी में तनाव पैदा हो जाएगा। तुम्हें खून की कमी है। तुम्हारा इलाज होना चाहिये।''

माता को बेटी कहने वाला ये दुस्साहसी विमूढ क़ौन हैदेवी की झपकती थकी पलकें चौंकती हुयी डॉ रामकृष्ण के चेहरे पर स्थिर हो गयींतीरथ प्रसाद का मुख फ्यूज उडे बल्ब सा ही फक्क होकर स्याह पड ग़याये कैसा कलियुगी भक्त? देवी की परीक्षा लेने चला है?

'' जगत का पालन करने और संहार करने वाली जननी का इलाज? ये आप क्या कह रहे हैं साहब? '' तीरथ प्रसाद को जैसे अपनी ही आवाज नहीं सुनाई पड रही है। बस वे क्रोध से या किसी अनिष्ट की आशंका से पत्ते की तरह कांप रहे हैं।
''
मैं ठीक कह रहा हूँ वीणा को इलाज की सख्त जरूरत है।'' ड़ॉ साहब ने दोहराया।
''
देवी का इलाज? ये जो इन्हें ज्वर है न वह तो इन्होंने सिध्दमणि के बेटे का ज्वर अपने ऊपर ले लिया है वरना उसका ज्वर अभी उतरने वाला नहीं था।'' सब देवी की महिमा है। तीरथ प्रसाद ने अज्ञानता में स्वयं ही देवी को ज्वर होने की बात प्रकट कर दी।
''
इसे ज्वर है? ''  डॉ रामकृष्ण मुस्कुराये। उनकी औषधि का श्रेय देवी लूट ले जाना चाहती हैं सिध्दमणि के बेटे को निरोग कर!
''
जी हाँ, देवी दूसरों का दुख ताप अपने ऊपर ले लेती हैं।''
''
सब बकवास है। इसे ज्वर है तो मुझे इसी वक्त इसका परीक्षण करना होगा। तुम व्यर्थ ही इसके जीवन से खिलवाड क़र रहे हो। इस तरह ये मर जाएगी।''
''
एसपी साहब आप कुछ कीजिये ना। ये साहब तो धार्मिक स्थान में अशांति फैलाना चाहते हैं।'' तीरथ प्रसाद एसपी से सम्बोधित हुए।
''
क्यों परेशान होते हैं। मैं कुछ करने के लिये ही आया हूँ।'' एसपीअब भी अपनी चौकस दृष्टि कक्ष में चारों ओर डाल रहे हैं।

सिया, असमर्थता पर मुंह में आंचल रखे स्थिति को भांपने का प्रयास कर रही हैवीणा की भौंचक्क दृष्टि अब भी सर्जन के मुख पर हैलोग अपनी व्यथा, दुख-पीडा, मनोकामना उससे कहते हैं, उसे कोई परेशानी है ये पूछने वाला ये पहला व्यक्ति हैजब देवी नहीं बनी थी तब माता-पिता की फटकार सुनती रही और जब देवी बना दी गई तो मानव के मौलिक अधिकारों से वंचित कर दी गईन मन का खाना-पहनना, न खेलना-बोलनाजी चाहा चीख पडे क़ि मैं इस देवी के आसन से उतरना चाहती हूँ। अभी इसी बक्त, नहीं चाहिये मुझे ये चमक दमकमैं अपनी तरह से जीना चाहती हूँ। वीणा के ज्वर से तपते नेत्रों में नमी की एक महीन परत उतर आईउस नम परत में आरती की बुझती लौ का लाल प्रतिबिम्ब अम्गारे सा दहकता प्रतीत हो रहा था

'' देवी की आंखों में तेज दिखाई नहीं देता आपको? '' देवी के क्रोध की ज्वाला आपको भस्म करदे, इससे पूर्व ही आप यहाँ से जाएं। तीरथ प्रसाद वीणा के अरुण नेत्रों की ओर संकेत करते हुए बोले।
सर्जन साहब अपनी बात पर अडिग र्हैं '' बेटी ये तुम्हारे खाने खेलने के दिन हैं। ये क्या स्वांग रचा कर बैठी हो। खुद को अपने बडे बुजुर्गों से पुजवाना तुम्हें अच्छा लगता है? इस छोटी उम्र में इस तरह धीर-गंभीर बैठे रहना अच्छा लगता है? ये रोज रोज की पूजा-अर्चना-आरती तुम्हें अच्छी लगती है? ये पाखण्ड अच्छा लगता है? ''

वीणा के नेत्र आवेग से भर आए उसने एक बार क्रोध से कसमसाते पिता को देखाउन्हें देख आंखों में तेजी से समाते अश्रुकणों को उसने चाहा फिर से वह भीतर सोख ले पर वह स्पष्ट अनुभव कर रही थी कि आंखों में छलक आंसू वापस भीतर नहीं जातेउसने पिता की धुंधलाती दृष्टि हटाईज्वर से तपती उंगलियों की पोरों में आंसुओं को समोया -

'' नहीं मुझे नहीं अच्छा लगता ये सब। मैं ऊब गई हूँ, थक गई हूँ ! ''

स्नेह लेप से वीणा सारी माया-काया-महिमा भूल गईडॉ रामकृष्ण ने आश्वस्ति की सांस लीयदि वीणा स्वयं अपनी स्थिति से असंतोष व्यक्त न करती तो वे उसके हित में कुछ नहीं कर सकते थे

तीरथ प्रसाद कुछ क्षण पक्षाघाती मुद्रा में खडे रहे फिर संभले -

'' देवी, ये अथर्मी आपकी परीक्षा ले रहा है और आप इसे तरह दे रही हैं। इसे भस्म कर दीजिये। आपने प्रत्येक युग में पापियों का नाश किया है।''
स्थिति की नाजुकता देख सिया, वीणा को कंधे से पकड उठाने लगी -  ''देवी, आप भीतर चलें, आपके ध्यान का समय हो रहा है।''

वीणा मां की मजबूत पकड में रबड क़े पुतले सी लुंज-पुंज हो एक ओर ढुलक गईउसे मूर्च्छा आ गई थीखलबली मच गईउस समय कक्ष में दो भक्त थे दोनों क्रुध्द हो सर्जन की ओर झपटे, जिन्हें सादे कपडे में तैनात पुलिसकर्मियों ने अपना परिचय देते हुए नियंत्रित किया

तीरथ प्रसाद चीखे -
'' डॉ साहब, एसपी साहब कृपा कर अब आप जाएं
देवी ध्यान में चली गई हैं''
'' बकवास है, वीणा अत्यंत कमजोर है
वह कमजोरी और तनाव से मूर्च्छित हो गई हैमुझे उसका परीक्षण करना है.. '' कहते हुए डॉक्टर रामकृष्ण ने साथ के चिकित्सक को एक इंजेक्शन तैयार करने का निर्देश दिया
तीरथ प्रसाद भडक़ाऊ नारे लगाने लगे -
'' धर्र्मकर्म में विघ्न डालने वाले डॉक्टर तेरा नाश हो जाएगा
''
''देवी अपने तेज से तुझ अधर्मी को भस्म कर देंगी
''

नारों ने उत्प्रेरक का काम किया और बाहर खडे लोग शोर मचाने लगेतीरथ प्रसाद को कुछ न सूझा तो झपटते हुए वीणा को गोद में उठा कर अन्दर ले जाने लगे

डॉक्टर रामकृष्ण ने हस्तक्षेप किया -

'' लडक़ी को उपचार की जरूरत है। इसे इसी वक्त इंजेक्शन देना है।''

दो सिपाहियों ने तीरथ प्रसाद को पकड क़र एक ओर ठेल दियातीरथ प्रसाद ने स्वयं को इतना असहाय पहले कभी नहीं पाया थाइधर तो वे पूरे क्षेत्र के लिये प्रभावी हो गये हैंबलशाली हो गये हैं श्रध्देय हो गये हैंऔर आज सर्जन, वीणा की बाम्ह में सुई लगा रहे हैं और वे अपनी झनझनाती शिराओं का प्रकम्प संभाले विवश खडे देख रहे हैं
तीरथ प्रसाद कुछ देर उछल कूद करते रहे फिर सिपाहियों की पकड से छूट, सदर द्वार से बाहर निकल
वहाँ खडे भक्तजनों को उकसाने लगे -

'' इस पातकी डॉक्टर ने देवी को जहर की सुई लगा दी है। यदि अब देवी समाधि लें लें तो दोषी यह अधर्मी होगा। आज इस गांव में आंधी आएगी, भूडोल आएगा, नाश हो जाएगा। यदि देवी चण्डी बन गई तो उनके क्रोध को शान्त करने के लिये हम किस शिव को उनके चरणों में डालेंगे? ''

तीरथ प्रसाद की ललकार ने भीड क़ो उग्र बना दिया समूह से विरोधी नारे उभरने लगेएसपी और डॉक्टर रामकृष्ण को गालियां देने लगेएसपी तत्परता से बाहर निकले और लोगों को शांत रहने का निर्देश देने लगेउनका तीक्ष्ण स्वर चीख-पुकार में खो कर रह गया स्वर्ण मन्दिर में सेना के प्रवेश की अनुमति के लिये प्रशासन को कई दिन सोचना पडा थायह भी धार्मिक स्थल है और काम सहजता से पूरा नहीं होगा, एसपी जानते थे उन्होंने गांव की सीमा पर तैनात पुलिस को वायरलैस पर सूचना दे तत्काल आने का आदेश दियाउत्तेजित लोग अब पुलिस पर पथराव करने लगेऔरतें बच्चे चीत्कार करते हुए, इधर-उधर भागेवीर पुरुष मोर्चे में डटे रहे पुलिस को हवाई फायर करना पडा पर जिनके शीश पर देवी का वरद हस्त हो उन्हें बारूद से भय कैसा? देवी कोई चमत्कार कर देंगी और सारे सिपाही भस्म हो जाएंगेउन्मादी लोग चीखते रहे, नारे लगाते रहे, पथराव करते डटे रहेपत्थरों से कौन हताहत हो रहा है किसे सुध थी? एक नुकीला पत्थर किसी युवक की कनपटी पर लगाचीखता हुआ युवक हथेली से रक्तस्त्राव दबाता हुआ भूमि पर बैठ गया

युवक के बहते रक्त ने एक क्षण को भीड क़े स्वर को मंद किया और तब जाकर एसपी, जो बडी देर से चीख रहे थे; का स्वर लोगों तक पहुंचा -

'' आप लोग शांत हों, वीणा को कोई जहरीला इंजेक्शन नहीं दिया गया है। वह होश में आ चुकी है। स्वस्थ है। वह तेज बुखार और कमजोरी के कारण मूर्च्छित हो गई थी।'' पहले भी वह कमजोरी के कारण मूर्च्छित होती रही है और आप लोगों को बताया जाता था कि देवी ध्यान में चली गई है। वीणा स्वस्थ है, चाहें तो आप लोग देख सकते हैं।

कोलाहल, कुतुहल में बदल गयानारेबाजी भनभनाहट में बदलती हुई बिलकुल ही शिथिल पड ग़ईये देवी की कैसी लीला है? लोग अविश्वास या अचरज से या सदमे से ठगे खडे थेगांवों के प्रमुख समझे जाने वाले लोग जिनमें सरपंच भी थे, दूसरों को ठेल ठाल देवी के कक्ष में पहुंचे देखा देवी ने मुकुट उतार कर एक ओर रख दिया है और डॉक्टर रामकृष्ण दूध में ग्लूकोज घोल कर पीने के लिये दे रहे हैंदूसरे का भरण-पोषण करने वाली अन्नपूर्णा कह रही हैं -

'' हमें दूध नहीं चाय पीना है, बहुत मन है।''
''
चाय पी लेना। पहले दूध पियो, तुम्हें इस वक्त ताकत की जरूरत है, तुम्हें तेज बुखार है।'' डॉक्टर रामकृष्ण, वीणा के खुले केश सहलाने लगे। जिस देवी के चरण गहे जाते हैं, सर्जन उनका शीश सहला रहे हैं। इस लोहमर्षक दृश्य को आंखे फाडे देखते लोग चकित हैं कि देवी एक सांस में दूध का ग्लास खाली कर हथेली से अधर पौंछ कह रही हैं -
''
डॉक्टर साहब दूध पीकर अच्छा लगता है, बहुत भूख लगी थी।''

लोग सदमे में हैंजगत का भरण पोषण करने वाली अन्नपूर्णा स्वयं भूखी हैंया भ्रम यह वही भूख है जो शबरी के बेर और सुदामा के चावल देख कर ईश्वर को लग आई थीहे अम्बे ! तुम्हारी महिमा अपरम्पार है

तीरथ प्रसाद की वही स्थिति हो गई जो जोश के बाद होश आने पर होती हैठण्डे पड ग़ये तीरथ प्रसाद हाथ जोड क़र एसपीके समक्ष खडे हो गए

'' साहब, अब देवी के विश्राम का समय है, उन्हें विश्राम करने दें।''
''
बाज आओ मास्टर जी। इस मासूम के जीवन से खिलवाड न करो। इसे पौष्टिक भोजन और उपचार की आवश्यकता है। वरना ये मर जाएगी। ये साधारण लडक़ी है देवी नहीं। एसपी जोर देकर बोले।''
''
मैं क्या जानूं साहब ये क्या है? मैं सीधा-सादा, धर्म-कर्म मैं विश्वास करने वाला साधारण आदमी हूँ, कृपा निधान! एक दिन इस वीणा ने बताया कि इसे देवी ने सपने में दर्शन देकर कहा है वे इसकी पवित्र देह में वास कर जन कल्याण करना चाहती हैं। लोगों का धर्म में से विश्वास उठ रहा है, इसीलिये धर्म की स्थापना करेंगी। धर्म ही सृष्टि को नष्ट होने से बचा सकता है। हमने सपने को देवी का आदेश मान लिया, हुजूर ।'' तीरथ प्रसाद शरणागत हो गए।
''
बाबू तुम इतने सयाने होकर झूठ बोलते हो? वीणा, खुले केशों की चोटी गूंथती हुई बोली -  ये क्यों नहीं कहते कि जब से तुम संतोषी माता के दर्शन करके आए मेरे पीछे पड ग़ए कि मैं देवी बन जाऊं। मैं ने मना किया तो तुमने और अम्मा ने मुझे पानी भरने वाली लजुरी(रस्सी) से मारा था। मेरे सिध्दमणि चाचा ने तुम्हें खूब समझाया था, ये धोखाधडी है, परन्तु तुम नहीं माने। मैं रोज कहती मेरा खेलने-पढने का मन होता है पर तुम सुनते नहीं थे। मुझे कल रात से बुखार है फिर भी तुमने आराम नहीं करने दिया।''

तीरथ प्रसाद पराजित हो गयेजैसे तूणीर के सारे बाण समाप्त हो गये होंसिया के मुख पर निराशा और तनाव का घटाटोप छा गयाउमडी पड रही रुलाई के साथ किसी प्रकार बोल फूटा -

'' चुप रह बिटिया, ये क्या  अण्ड बण्ड बक रही है? ''
आज मौका मिला है तो बिटिया चुप नहीं रहेगी -  '' अम्मा मैं अण्ड बण्ड नहीं बक रही हूँ। मैं सच कह रही हूँ डॉ साहब। मैं पढना चाहती हूँ, पेट भर खाना चाहती हूँ, अच्छे अच्छे कपडे पहनना चाहती हूँ। एसपी साहब मुझे इस कैद से बाहर निकाल दें। मेरा कोई घर नहीं है, कोई अम्मा नहीं, कोई बाबू नहीं है। सब कसाई हैं। ''

वीणा हिचकी लेकर रो पडीलोग सदमे में हैंदूसरों का कष्ट हरने वाली देवी स्वयं इतनी दुखी हैंरो रही हैंकैसी अबूझ पहेली है

'' क्यों झूठ बोलती है, अम्बे! क्यों इस गरीब की मिट्टी पलीद करती है? ''
तीरथ प्रसाद बहुत कातर हो आए हैं। लगता है रो देंगे।
''
ढोंग बंद करो दादाभाई।'' सिध्दमणि प्रकरण का पटाक्षेप कर डालना चाहते हैं -
''
भलाई इसी में है कि तुम अपनी गलती मान लो। तुम गांव के इन भोले लोगों को बहुत लूट चुके हो। बहुत धन जोड चुके।''
सिध्दमणि एसपी से सम्बोधित हुए -  ''साहब मैं इन्हें बहुत बरजता था पर ये मानते न थे। वीणा को आधा पेट खाना देते ताकि उसका पाचन सही रहे और वह भक्तों के सामने उठ कर शौचादि को न जाए। दिन भर बैठे रहने से इसकी रीढ में दर्द रहने लगा है। मेरी ये सिया भाभी इसकी पीठ में आयोडेक्स लगा कर काम चला लेती हैं। दादाभाई अंगूठी, तावीज, माला बाजार से खरीद कर देवी का आर्शीवाद कह भक्तों को दे अच्छी दक्षिणा वसूलते रहे हैं। वीणा जब भी देवी बनने से इनकार करती, ये उसे मारते-पीटते। यह कमजोरी से अचेत हो जाती और ये कह देते देवी ध्यान में चली गई है। इन्होंने इस बच्ची को चमत्कारी बना कर इसकी आजादी छीन ली है। आपकी कृपा हो गई वरना माह-पखवाडे में मर जाती।''

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'' इसे जाति बिरादरी से बाहर कर दो। इसने गांव को नीचा दिखाया है।''
सिपाहियों ने बीच-बचाव किया। एसपी बोले -  ''आपकी भावनाओं को चोट पहुंची है, मैं समझ सकता हूँ पर इन्हें मार-पीट कर आप लोग कानून हाथ में नहीं ले सकते। जो भी उचित कार्यवाही होगी वह हम करेंगे।तीरथ प्रसाद जी आपको हमारे साथ चलना होगा। आपसे पूछताछ करनी है।''
ड़ॉ रामकृष्ण बोर्ले वीणा को उपचार की जरूरत है, इसे अस्पताल में भरती करना होगा।
''
डॉ साहब आप मुझे अपने साथ ले चलेंगे? ''  सुनकर वीणा का रुदन कुछ थमा।
''
हाँ बेटी, तुम कपडे बदल आओ। हमारे साथ चलना है तुम्हें।''
''
अच्छा । और जब मैं ठीक हो जाऊं तो आप मुझे कोई छोटा-मोटा काम दिला देना या अनाथ आश्रम में भेज देना। अब मैं घर वापस नहीं आऊंगी। अम्मा-बाबूजी बहुत मारेंगे मुझे।''

सुनकर सिया का दबा घुटा रुदन जिसे वह मुंह में आंचल ठूंस दबाए हुए थी, वेग से फूट पडाअरुणा, वरुणा सब कुछ समाप्त हो जाने की त्रासदी समेटे एक कोने में सिकुडी बैठी हैं

..और जब वीणा छींटदार सलवार कुर्ता और सफेद दुपट्टा डाल कर सर्जन की कार की पिछली सीट पर बैठी तो उसे देवी के रूप में आदी हो चुके लोगों को लगा महिमा मण्डित देवी, रूप बदल कर किसी भक्त का काम सिध्द करने जा रही हैं या फिर किसी भक्त की परीक्षा लेनेपुलिस की जीप में बैठते हुए तीरथ प्रसाद का शीश कमर तक झुका थास्याह मातमी अंधेरे में दो गाडियां धूल उडाती चल पडींधर्म की ध्वजा फहराने वाला महिमामण्डित गांव इस तरह उजाड और वीरान दिख रहा था, जैसे मेला उजडने के बाद का मैदान

सुषमा मुनीन्द्र
 

स्त्री विशेषांक

   | पीछे |  

इन्द्रनेट पर हलचल - सुब्रा नारायण
अपने अपने अरण्य - नंद भारद्वाज
चिडिया और चील - सुषम बेदी
ठठरी - हरीश चन्द्र अग्रवाल
प्रश्न का पेड - मनीषा कुलश्रेष्ठ
बुध्द की स्वतंत्रता - मालोक
भय और साहस - कनुप्रिया कुलश्रेष्ठ
मदरसों के पीछे - रमेशचन्द्र शुक्ल
महिमा मण्डित - सुषमा मुनीन्द्र
विजेता - सुषमा मुनीन्द्र
विश्वस्तर का पॉकेटमार- सधांशु सिन्हा हेमन्त
शहद की एक बूंद - प्रदीप भट्टाचार्य
सम्प्रेषण  - मनीषा कुलश्रेष्ठ
सिर्फ इतनी सी जगह - जया जादवानी

कहानियों का पूरा संग्रह

 

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